मैं इस प्रेस फ्रीडम को सही नहीं मानता, मेरा मानना है कि प्रेस फ्रीडम रैंकिंग का आधार उस संस्था का परसेप्शन है। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) के चेयरमैन जस्टिस चंद्रमौली कुमार प्रसाद ने सोमवार को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि (एमसीयू) में आयोजित एक संवाद कार्यक्रम में वल्र्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स को लेकर एक स्टूडेंट के सवाल का जवाब देते हुए यह बात कही।
इस दौरान टेलीविजन न्यूज चैनल पर होने वाली बहस को लेकर जस्टिस प्रसाद ने कहा कि ये मेरा व्यक्तिगत मत है कि इस प्रकार की बहस में शोर अधिक होता है, ठोस कुछ नहीं। न्यूज चैनल का आधार समाचार होना चाहिए, न कि मनोरंजन।
कार्यक्रम की अध्यक्षता विवि के कुलपति जगदीश उपासने ने की। इस दौरान भारतीय प्रेस परिषद के सदस्य प्रभात दास, अशोक उपाध्याय, प्रदीप जैन, कमल नयन नारंग, एमएम मजीद और परिषद की सचिव अनुपमा भटनागर, विवि के कुलाधिसचिव लाजपत आहूजा मौजूद रहे।
तीसरे प्रेस आयोग की आवश्यकता जस्टिस प्रसाद ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इंटरनेट आधारित मीडिया को ध्यान में रखकर स्टडी होनी चाहिए। इसके लिए तीसरे प्रेस आयोग का गठन किए जाने की आवश्यकता है। बाद में नियमन के लिए कानून भी बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जनता के दबाव में जो कानून बनाया जाता है वो सही तरीके से काम नहीं करता है।
पत्रकारों की सुरक्षा के लिए बने कानून
जस्टिस प्रसाद ने कहा कि प्रसाद ने कहा कि भारत में विभिन्न राज्यों ने अपने स्तर पर पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए हैं लेकिन अभी पूरे देश के लिए कोई एक कानून नहीं है। प्रेस परिषद चाहती है कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक कानून केंद्र सरकार को बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सभी पत्रकारों की हत्या उनकी पत्रकारिता के कारण नहीं होती है, बल्कि कई पत्रकारों की हत्या का कारण एक्टिविज्म भी होता है।
जस्टिस प्रसाद ने कहा कि प्रसाद ने कहा कि भारत में विभिन्न राज्यों ने अपने स्तर पर पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए हैं लेकिन अभी पूरे देश के लिए कोई एक कानून नहीं है। प्रेस परिषद चाहती है कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक कानून केंद्र सरकार को बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सभी पत्रकारों की हत्या उनकी पत्रकारिता के कारण नहीं होती है, बल्कि कई पत्रकारों की हत्या का कारण एक्टिविज्म भी होता है।
आज सबसे बड़ा संकट है विश्वसनीयता जस्टिस प्रसाद ने कहा कि आज पत्रकार नेताओं या किसी अन्य के कहे का अपने अनुसार अर्थ निकालने लगे हैं, इस प्रवृत्ति ने पत्रकारिता की विश्वसनीयता को कम किया है। उन्होंने बताया कि पत्रकार जब एक्टिविस्ट भी हो जाता है, तब उसकी बात का भरोसा करना मुश्किल हो जाता है।
उन्होंने कहा कि आज पत्रकारिता के सामने सबसे बड़ा संकट उसकी विश्वसनीयता है। इसका सबसे प्रमुख कारण है पत्रकारों का वित्तीय रूप से परतंत्र होना। जिस पत्रकार की नौकरी और उसका वेतन सुरक्षित नहीं है, वह पत्रकार स्वतंत्र नहीं हो सकता। पत्रकार की सामाजिक सुरक्षा भी आवश्यक है।