ग्वार, अरैबिक बबूल, ट्रैका कैंथ गोंद, ग्वार गोंद, पेक्टिन, कराया गोंद, कोंजेक फ्लोर, मांड, शहद, गुड़, खजूर, खजूर का सीरप, खंडसारी, करम्यूनिक, हल्दी, पापरिक, पापरिक सत्त, पापरिक ओलियो रेजन, एन्नाटो सत्त, क्लोरोफिल ए, क्लोरोफिल बी, कैरामल सादा, किसी रंगन सब्जी और फल का सांद्र व जल सत्त। पिसे मसाले, गुलाब का तेल, केवड़ा, रोजमेरी तेलनींबू का सत्त, आटा, दलिया, रवा, मसालों के आसुत तेल। सिट्रिक व टारएरिक एसिड व अन्य को शामिल किया गया है। इनका मिश्रण होने से ही ये खाद्य पदार्थ जांच के दायरे में आ जाएंगे। ये कितने प्रतिशत में होंगे इसका पूरा विवरण भी दिया है।
आयुर्वेद आहार बनाने वालों के लिए देश भर में प्रचलित 71 तरह की प्रमाणित पुस्तकों में बताए गए फार्मूले और उनकी विधि का उपयोग कर ही कोई सामग्री बना सकते हैं। इसमें चरकसंहिता जैसी पुस्तकें शामिल हैं। ये नुस्खे 1940 से पहले के लिखे मान्य किए गए हैं। इन प्रमाणित पुस्तकों के परिशिष्ट अथवा अनुबंध में शामिल संगटकों और नुस्खों पर आयुर्वेद आहार के रूप में विचार नहीं किया जाएगा।
एफएसएसएआई ने इनकी बिक्री के लिए लोगो भी बताए हैं। लाइसेंस लेने के बाद वे इन लोगों को लगाने और उत्पाद को बाजार में बेचने की स्थिति में आ जाएंगे। राजपत्र जारी होने के बाद बिना लोगो के कोई भी इस काम को नहीं करेगा।
आयुर्वेइ आहार के संबंध में अब लाइसेंस लेना होगा। बिना इसके कोई भी कंपनी या संचालक आयुर्वेद आहार नहीं बेच सकेंगे। इसमें भी उत्पाद का लोगो लगाना होगा। हम इस संबंध में जल्द ही कुछ डिपार्टमेंटल स्टोर में जांच करेंगे।
देवेंद्र दुबे, मुख्य खाद्य सुरक्षा अधिकारी, भोपाल