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दिखावे पर ज्यादा जोर, हकीकत को जिम्मेदारों ने किया अनदेखा

locationभोपालPublished: Oct 15, 2019 09:50:47 am

– शहर में तीन एजेंसियों के जरिए लगे पौधे
 

दिखावे पर ज्यादा जोर, हकीकत को जिम्मेदारों ने किया अनदेखा

दिखावे पर ज्यादा जोर, हकीकत को जिम्मेदारों ने किया अनदेखा

भोपाल। हरियाली बढ़ाने के लिए चली मुहिम के बाद जिस तरह के हालात नजर आए उसके मुताबिक नगर निगम ने दिखावे पर ज्यादा जोर दिया। हकीकत में कई स्थानों पर जो पौधे लगे वे खराब हो गए। ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने के टारगेट के चलते रखरखाव पर ध्यान ही नहीं दिया गया। जिसके कारण ये स्थिति बनी।
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अशोका गार्डन

प्रभात चौराहे से रेलवे स्टेशन तक अस्सी फीट सड़क के सौन्दर्यीकरण पर अब तक लाखों रुपए खर्च हो गए। सीपीए के जरिए यहां पौधरोपण से लेकर कई कार्य किए गए। चौराहे पर तो हरियाली है लेकिन विवेकानंद विथिका के पास लगे पौधे सूखे हुए थे। स्थानीय लोगों ने बताया पिछले दो माह में सेंट्रल वर्ज पर एक ही जगह कई बार पौधे लगे लेकिन हर बार ये नष्ट हो गए। अभी भी ये सूखे हुए हैं।
बरकतउल्ला विवि के पास

बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के सामने सर्विस रोड किनारे पौधे लगाए गए हैं। इस रोड किनारे जो फुटपाथ बना था उसकी टाइल्स हटाकर पौध रोपण हुआ। इनकी सुरक्षा के नाम पर कुछ नहीं है। पौधों के लिए इस पाथ-वे पर जिन हिस्सों की टाइल्स निकाली गई उसके कई हिस्से खाली पड़े हैं। कुछ पौधे हरे भरे हैं जबकि कुछ सूख चुके हैं।
पौधों को लगाने पर इतना होता है खर्च

सीपीए अधिकारियों के अनुसार एक पौधे पर एक वर्ष में निराई, गुड़ाई, खाद, पानी सबका खर्च 605 रुपए आता है। वर्ष 2017-18 में सीपीए ने 6220 पौधे सड़कों के सेंट्रल वर्ज पर रोपित किए। एक पौधे पर 605 रुपए खर्च के हिसाब से इस मद में सीपीए ने 37.63 लाख रुपए खर्च किए। सीपीए फॉरेस्ट विंग का सालाना बजट नौ करोड़ रुपए का है, जिसमें ढाई लाख पौधे और 240 स्थाई कर्मचारियों का खर्च शामिल है। वहीं नगर निगम की उद्यान शाखा से बताया गया कि वर्ष 2017-18 में पौधरोपण व मेंटेनेंस के लिए पांच करोड़ रुपए का बजट है, जिनमें पौधेरोपण पर 10-12 लाख ही खर्च किए गए हैं।

हरियाली को बढ़ावा देने के लिए पौधरोपण करने के बाद उनकी देखभाव के इंतजाम होने चाहिए। शहर में कई ऐसे स्थान हैं जहां प्लान्टेशन के कुछ समय बाद ही पौधे नष्ट हो गए। ये केवल औपचारिकता बनकर रह गई। अगर देखरेख की जाए तो शहर में हरियाली आ सकती है।
उमाशंकर तिवारी समाजसेवी

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