scriptपैसा जीवन का साधन है और प्रेम साध्य, साधन को साध्य मत बनाइए | Importance of love in family | Patrika News

पैसा जीवन का साधन है और प्रेम साध्य, साधन को साध्य मत बनाइए

locationभोपालPublished: Oct 17, 2018 07:51:01 am

Submitted by:

Bharat pandey

– युवा बोध संस्कार प्रवचनमाला में कुंथु सागर महाराज ने बताया परिवार में प्रेम का महत्व

news

Importance of love in family

भोपाल। पैसा कुछ है पर प्रेम सब कुछ है, जीवन के निर्माण में कुछ की आवश्यकता है, लेकिन जहां कुछ है वहां सब कुछ अपने आप आ जाता है। घर में प्रेम है तो सब कुछ है, पैसे से साधन-सामग्री तो खरीद सकते हो पर जीवन में शांति प्रेम से ही आएगी।

दुनिया में हर अनमोल चीज पैसे से नहीं खरीद सकते, समय से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ नहीं है, इसे खरीदा नहीं जा सकता, धन से आप मूर्ति तो खरीद सकते हो पर भगवान नहीं। धन सम्पत्ति सुख साधन दे सकती है, लेकिन जीवन की जटिलताओं का समाधान और शांति प्रेम से ही मिलेगी।

विद्यासागर संस्थान में युवाबोध संस्कार प्रवचनमाला में यह बात कुंथुसागर महाराज ने कहीं। उन्होंने परिवार का निर्माण पैसे से नहीं प्रेम से विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि पैसा आता है, तो भय बढ़ता है और प्रेम से भय समाप्त हो जाता है।

थोड़ा त्याग और थोड़ा आपस में प्यार इनसे ही मिलकर सुखी परिवार बनता है। वर्तमान में बदल रही परिस्थितियों पर चिंता व्यक्त करते हुए जैन मुनि ने कहा कि पहले भारतीय संस्कृति सोने की चिडिय़ा कहलाती थी, पहले बाल आश्रम और गुरुकुल होते थे, पर वर्तमान में हमारे देशों में वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ रही है और सोचनीय प्रश्न यह है कि वृद्धाश्रम में पढ़े लिखे बच्चों और धनवानों के माता-पिता ही रहते हैं।

 

शिक्षा प्रणाली में संस्कार, संस्कृति का अभाव
जैन मुनि ने कहा कि आज विद्यार्थी भविष्य में अच्छे जॉब और बड़े-बड़े व्यवसाय को दिमाग में रखकर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। संस्कार और संस्कृति के अभाव में यह शिक्षा व्यर्थ है। एक बात हमेशा ध्यान में रखना जीवन में कभी मन्दिर का निर्माण कर पाओ न कर पाओ, पर जीवन पर्यन्त माता-पिता का निर्वाह करना, इससे बड़ा कोई धर्म नहीं है ।

प्रेम एक धागा है जो परिवार रूपी माला को सुरक्षित रखता है, परिवार के प्रत्येक सदस्य मोती के समान हैं, धागा टूटने से माला टूट जाएगी तो परिवार बिखर जाएगा । जीवन में अहमियत देना हो तो प्रेम को ही देना और प्रेम की परकाष्ठा सीखनी है तो मां से सीखना। मां सचमुच मां ही है अगर औलादें निकृष्ट होकर माता-पिता के प्रति दुव्र्यवहार करती हैं तब भी उनके दिल से दुआएं और आशीर्वाद ही निकलता है।

रिसेप्शन में आ गए बहुत से रिएक्शन
मुनि कुंथुसागर महाराज ने कहा कि परिवार में एकता लाना चाहते हो तो सदा समाूहिक भोजन करना चाहिए, समाज में एकता चाहते हो तो सामूहिक पूजा-अर्चना करना चाहिए । वर्तमान प्रणाली में पूरी तरह पाश्चातय सभ्यता आ चुकी है।

पहले स्नेह भोज प्रीति भोज होता था, परोसकर मेजबान मेहमानों को भोजन कराते थे और उसका आज विकृत रूप रिसेप्शन हो गया है, जिससे बहुत से रिएक्शन आ गए हैं। इससे भोजन की बहुत बर्बादी हो रही है। इसमें सुधार की जरुरत है।

 

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो