आशय ने बताया कि जब स्कूल में हिंदी के पेपर में जब सवाल आता था कि इस प्रश्न का आश्य स्पष्ट कीजिए तो मेरे दोस्त अक्सर मुझसे पूछते थे कि यार तुम्हारे नाम का आशय क्या है? और मैं कहता था कि मेरे नाम का आशय… आशय ही है। मेरे चाचाजी तरुण मिश्रा जी ने को लगता था कि मैं सभी अच्छी चीजों को डिफाइन करता हूं, उन्हें एक अर्थ देता हूं इसलिए उन्होंने मेरा नाम आशय रखा। नाम रखने के मामले में चाचाजी बहुत क्रिएटिव हैं, उन्होंने मेरे भाई का नाम लय और बहन का नाम तनमन रखा है।
बीच में ही छोड़ दी थी सीए की पढ़ाई
वर्ष 2013 का एक किस्सा शेयर करते हुए आशय ने कहा कि उस वक्त मैं अपनी फ्रेंड गरिमा के साथ सीए की तैयारी कर रहा था। मैं एक हफ्ते की छुट्टी मनाकर वापस जब क्लास में गया तो टैक्स का लेक्चर चल रहा था। मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, पता नहीं उस दिन दिगाम में क्या आया कि मैंने गरिमा से कहा कि यार, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है, वो बोली अरे, टेंशन क्यों ले रहा है, हम इसे मिलकर पूरा कर लेगें। मैं क्लास से उठा और मम्मी को फोन किया कि मैं सीए नहीं करूंगा, वो काफी डर गईं, बोली कुछ दिन की छुट्टी ले लो, मैंने कहा अभी वेकेशन से ही तो लौटा हूं। बस, मैंने सीए की पढ़ाई छोड़ दी। मां ने पूछा क्या करोगे? मैंने कहा ये तो नहीं पता लेकिन यह पता है कि सीए नहीं करना है। मैंने मुम्बई से गे्रजुएशन कम्प्लीट किया है, अब मेरी ख्वाहिश परफॉर्मिंग आर्ट में मास्टर्स करने की है।
8 साल तक ली शास्त्रीय संगीत की ट्रेनिंग
आशय ने बताया कि मैं यूकेलेले भी बजाता हूं और जब भी मैं छुट्टियों में घर जाता हूं तो चाचाजी अपने पास बिठा लेते हैं और मुझसे गाने सुनते हैं। जब मैं केजी-1 में थो तो उन्होंने भातखंडे महाविद्यालय बिलासपुर में हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक कोर्स में एडमिशन कराया था। मैंने करीब 8 साल तक शास्त्रीय संगीत की ट्रेनिंग ली इसके बाद मैं बोर्डिंग स्कूल चला गया।
समय की कमी के चलते थिएटर से दूरी
आशय नादिरा बब्बर के साथ उनके एकजुट थियेटर में काम कर चुके हैं। आशय ने बताया कि पृथ्वी थिएटर में मेरे ‘झुमरू और झुमरी’ नाटक के दो शो थे, इसमें मैं लीड रोल में था। नाटक से एक दिन पहले मेरे पास पेटीएम की एड टीम से फोन आया कि अगले दिन एड शूट है। मैंने नादिरा बाजी से बात की और उन्होंने मेरी पूरी मदद की। मैंने नाटक में म्यूजिक संभाल रहे प्रशांत को ओवरनाइट उस रोल के लिए तैयार किया। पृथ्वी में नाटक का पहला शो मैंने किया और दूसरे शो में प्रशांत ने उस रोल को बखूबी निभाया। इस वाकये के बाद और समय की कमी के चलते फिलहाल मैंने थिएटर से दूरी बना रखी है।
‘प्यार के पापड़’ में है ठेठ कनपुरिया परिवेश
18 फरवरी से स्टार भारत पर प्रसारित हो चुके इस शो में ठेठ कनपुरिया परिवेश है और इस सीरियल को लिखने वाले कॉमेडियन अनिरुद्ध मधेशिया भी कानपुर के हैं। शो की मुख्य स्टारकास्ट में अखिलेंद्र मिश्रा हैं जो कि ससुर की भूमिका में हैं। वहीं प्रेमी-प्रेमिका की भूमिका में आशय मिश्रा और स्वरा थिंगले हैं। यह कहानी रुढिवादी सोच पर है जो आज के समय में भी लोग रखते हैं। आशय बताते हैं कि नाटक में ओमकार मानता है कि इंसान चाह ले तो अपने प्रेम को जीत सकता है। दोनों के बीच जातीय बंधन भी है, उनकी प्रेमिका शिविका मिश्रा समझदार लड़की है लेकिन अपने पिता से डरती हैं। जब दोनों प्रेम में पड़ते हैं प्रेमिका के पिता पंडित त्रिलोकी नाथ मिश्रा प्रेम की राह में अड़कर खड़े हो जाते हैं। फिर अपने प्यार को पाने के लिए किस तरह ओमकार पापड़ बेलते हैं, इस कहानी में यही दिखाया गया है।