कांग्रेस का वोट प्रतिशत 40.89 से घटकर 34.50 पर आया
कांग्रेस के लिए वोट प्रतिशत से खिसकने की कहानी भी कुछ अलग नहीं है। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपने परंपरागत वोट बैंक तक सीमित रही, जो कि 34.89 था। इसके चलते उसे तब प्रदेश में दो सीटें मिली थी। पिछले विधानसभा चुनाव में उसने भाजपा सरकार की एंटीइनकंबैंसी का फायदा उठाते हुए अपने वोट प्रतिशत में 6 प्रतिशत का इजाफा कर लिया और सत्ता में आ गई।
अब पांच माह में ही कांग्रेस सरकार से हुए मोहभंग और मोदी लहर के कारण उसका वोट बैंक 40.89 से घटकर 34.50 प्रतिशत ही रह गया। प्रदेश में तीसरी ताकत की बात करें तो यह लगातार अपना जनाधार प्रदेश में खो रही है।
बसपा को 2014 के लोकसभा चुनाव में 3.80, सपा को 0.75 प्रतिशत वोट मिले थे। विधानसभा चुनाव में बसपा-सपा ने भी भाजपा की एंटी इंनकंबैंसी पर वोट प्रतिशत बढकऱ बसपा ने 5.01 और सपा ने 1.30 प्रतिशत वोट कर लिए। बसपा के दो तो सपा का एक विधायक जीते। इस बार बसपा को 2.38 और सपा को मात्र 0.22 प्रतिशत से संतोष करना पड़ा।
कांग्रेस की हार के 4 बड़े कारण
राष्ट्रवाद, एयर स्ट्राइक
चुनाव के ठीक पहले पाकिस्तान के बालाकोट में की गई एयर स्ट्राइक को भाजपा ने बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया। भाजपा ने भाषणों के साथ-साथ सोशल मीडिया में यह संदेश दिया कि देश भाजपा के हाथों में ही सुरक्षित रहेगा और मोदी सरकार आने पर आतंकवाद को जड़ से खत्म कर दिया जाएगा। चुनाव के पहले एयर स्ट्राइक और एयरफोर्स के फायटर पायलट अभिनंदन की देश वापसी के मुद्दे ने जादू का काम किया और भाजपा के पक्ष में सकारात्मक माहौल बनाया।
किसान कर्ज माफी
कांगे्रस प्रदेश सरकार की किसान कर्ज माफी को ठीक से भुना नहीं पाई। आचार संहिता के पहले किसानों को इसका पूरा लाभ नहीं मिल पाया। उधर भाजपा ने इसे चुनावी मुद्दा बनाकर दबाव बना लिया। किसानों की नाराजगी कांग्रेस को भारी पड़ी।
बिजली की समस्या
इधर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भोपाल से चुनाव लड़ रहे थे, उधर प्रदेश के कई इलाकों में बिजली कटौती शुरू हो गई। भाजपा ने इसे दिग्विजय के लालटेन युग से जोड़ कर प्रचार का अहम हथियार बना लिया। कांग्रेस सरकार ने अघोषित बिजली कटौती करने वालों पर कड़ी कार्रवाई की, लेकिन भाजपा इस मामले को भुनाने में सफल साबित हुई।
मोदी के अंडर कंरट को भांप नहीं पाई कांग्रेस
कांग्रेस प्रदेश में चल रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अंडर करंट को भी भांप नहीं पाई। उसके पास मोदी की काट के लिए न तो चेहरे थे और ना ही वो उस स्तर का प्रचार तंत्र विकसित कर पाई। भाजपा को इस फेक्टर का सबसे ज्यादा लाभ मिला।