लेकिन मजे की बात यह है कि दो हजार करोड़ रुपए से तैयार हो रही हमीदिया अस्पताल की नई इमारत में इस मशीन के लिए बंकर बनाना ही भूल गए। इस भवन मे रेडियोथेरेपी की यूनिट ना होने से मरीजों का इलाज कहां होगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
मालूम हो कि कोबाल्ट मशीन से हर रोज सिर्फ 10 से 15 कैंसर मरीजों की सिकाई हो पाती है। लीनियर एक्सीलरेटर से हर रोज 95 से 100 मरीजों की सिकाई हो सकती है। पांच साल से लीनियर एक्सीलरेटर को लगाने की कवायद हो रही है, लेकिन नए भवन में जगह ना होने से अब स्थितियां जटिल हो जाएंगी।
कोबाल्ट थैरेपी में क्षतिग्रस्त हो जाते हैं स्वस्थ टिश्यू
कैंसर रोगियों को फि लहाल कोबाल्ट थैरेपी दी जा रही है, इससे कैंसर प्रभावित सेल के अलावा स्वस्थ सेल भी क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। वहीं लीनियर एक्सीलेटर मशीन सिर्फ कैंसर कारक सेल को ही नष्ट करती है। बाजार में इस पद्यति से इलाज कराने में डेढ़ से दो लाख रुपए खर्च आता है।
रेडिएशन को रोकने के लिए होते हैं बंकर
कैंसर सिकाई के लिए उपयोग की जाने वाली मशीनों से बहुत ज्यादा मात्रा में रेडिएशन निकलता है। ऐसे इसे रोकने के लिए मशीन को अक्सर बिल्डिंग के बेसमेंट में इंस्टॉल किया जाता है। मशीन को जिस बंकरनुमा कमरे में रखा जाता है, उसकी दीवारें करीब एक फीट चौड़ी बनाई जाती हैं। यही नहीं दीवार पर एल्युमीनियम की मोटी परत चढ़ाई जाती है। इसके साथ ही विशेष रसायन मिले पेंट किए जाते हैं जिससे रेडिएशन बाहर ना आए।
लीनियर एक्सीलरेटर के लिए प्रस्ताव है। इसके लिए नए भवन में विभाग बनाया जाएगा। भवन कहां बनना है और इसकी डिजाइन के लिए जल्द ही बैठक करेंगे।
कल्पना श्रीवास्तव, संभागायुक्त
3464 शहर में कैंसर के मरीज 2013 में
50 फीसदी बढ़ गई मरीजों की संख्या
55 फीसदी मरीज ओरल और ब्रेस्ट कैंसर के
162 पुरुष मरीज ओरल कैंसर के 2015 में
73 फीसदी मरीज की उम्र 45 से कम
60 फीसदी मरीजों को देर से पता चलता है