इसी का नतीजा है कि बीएड में ऑनलाइन प्रवेश (ई-प्रवेश) का तीसरा चरण पूरा होने को आया, फिर भी राज्य के कॉलेजों की 70 में से 30 हजार सीटें अब भी खाली हैं। कॉलेज स्तर की कांउसिलिंग में भी तस्वीर बदलने वाली नहीं है। कॉलेज संचालकों का कहना है कि यही स्थिति रही तो कॉलेज संचालन का खर्च भी निकालना मुश्किल हो जाएगा।
यह है कारण… : निजी कॉलेजों में फीस ज्यादा, फीस जितनी सुविधाएं नहीं
दूसरे राउंड में भी निराशा
इसी तरह से 26 मई से 18 जून तक दूसरे चरण में 28,479 सीटें आवंटित हुईं। इनमें 16 हजार छात्रों को पहली च्वॉइस मिली। 2300 को दूसरी, 1400 को तीसरी वरीयता का कॉलेज मिला। इस बार स्थिति और नीचे चली गई। केवल 6,689 विद्यार्थियों ने फीस जमाकर एडमिशन लिया। अभी 7 से 27 जून के बीच तीसरा चरण चल रहा है। इसमें भी तस्वीर बदलती नहीं दिख रही।
– निजी कॉलेजों में फीस ज्यादा
– फीस जितनी सुविधाएं नहीं
बीएड की प्रथम पांच वरीयताएं
प्रथम : 16,562
द्वितीय : 2,470
तृतीय : 1220
चतुर्थ : 757
पंचम : 517
इसलिए दूरी बना रहे छात्र
: बीएड पहले प्राथमिकता में था। अब विकल्प है।
: निजी कॉलेज औसतन एक साल में 40-80 हजार, यानी दो साल 80 हजार से 1 लाख फीस लेते हैं।
: इसके बावजूद कॉलेजों में सुविधाएं, लैब और स्तरीय फैकल्टी नहीं मिलती।
महज 15 हजार छात्रों ने ही फीस जमा की
उच्च शिक्षा विभाग के आंकड़े बताते हैं, 17 मई से 6 जून के बीच चले पहले चरण में एनसीटीई के 9 पाठॺक्रमों में सबसे ज्यादा बीएड में 24,781 सीटें आवंटित हुई थीं। इनमें 16,562 छात्रों को पसंदीदा कॉलेज मिले। इसके बाद 2, 470 को द्वितीय, 1, 220 तृतीय, 757 चतुर्थ और 517 को पांचवें क्रम के कॉलेज मिले। यानी, करीब 20 हजार विद्यार्थियों को पसंदीदा कॉलेज मिले। इसके बाद भी अंतिम तौर पर महज 15 हजार छात्रों ने ही फीस जमा की।
एनसीटीई के पाठ्यक्रमों में विद्यार्थियों का रुझान पिछले साल की तुलना में कम दिख रहा है। आंकड़ों से स्पष्ट है विद्यार्थी पहले कॉलेज आवंटित होने पर शुल्क जमा कर एडमिशन में रुचि नहीं ले रहे हैं। छात्र जागरूक हुए हैं। वे सर्वश्रेष्ठ कॉलेज में ही प्रवेश लेना चाहते हैं। कॉलेजों को अकादमिक गुणवत्ता बढ़ाना चाहिए।
– धीरेंद्र शुक्ला, ओएसडी अकादमिक, आयुक्त कार्यालय