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क्या मध्यप्रदेश की राजनीति में भी मिल गए रामविलास पासवान, जिस दल की सरकार हमेशा उसके साथ?

locationभोपालPublished: Jan 29, 2020 03:28:32 pm

Submitted by:

Pawan Tiwari

नारायण त्रिपाठी पहली बार 2003 में समाजवादी पार्टी से विधायक बने थे।

क्या मध्यप्रदेश की राजनीति में भी मिल गए रामविलास पासवान, जिस दल की सरकार हमेशा उसके साथ?

क्या मध्यप्रदेश की राजनीति में भी मिल गए रामविलास पासवान, जिस दल की सरकार हमेशा उसके साथ?

भोपाल. राजनीति में रामविलास पासवान के बारे में कहा जाता है कि केन्द्र में सरकार किसी की भी हो पर उन्हें मंत्रायल जरूर मिलेगा। मध्यप्रदेश की सियासत में भी एक नेता ऐसा है जो हर बार सत्ता पक्ष में जाने की कोशिश करता है पर इस नेता को अभी तक मंत्रालय नहीं मिला है। नेता का नाम है नारायण त्रिपाठी। मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार जितनी सुर्खियों में रही उतनी ही सुर्खियों में नारायण त्रिपाठी रहते हैं। नारायण कभी भाजपा खेमे खड़े रहते हैं तो किसी मुद्दे पर कांग्रेस के साथ हो जाते हैं। जब वो कांग्रेस में थे तो उनका झुकाव भाजपा की तरफ था और अब जब भाजपा में हैं तो उनका लगाव कांग्रेस की तरफ बढ़ रहा है। लेकिन ऐसे में सवाल है कि आखिर बार-बार नारायण यूटर्न क्यों ले रहे हैं।
सीएए का विरोध
नारायण त्रिपाठी ने नागरिकता संशोधन कानून का विरोध किया है। नारायण त्रिपाठी ने कहा- मैं अपनी अंतर्रात्मा से सीएए का विरोध कर रहा हूं। सीएए से भाईचारा खत्म हो रहा है। देश में गृह क्लेश बढ़ रहा है। लोग एक-दूसरे को अब देखना नहीं चाह रहे हैं। पूरे देश में भाई चारा खत्म हो रहा है। हम पार्टी फोरम पर अपनी बात रखेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि यह पार्टी की राय नहीं है, बल्कि ये मेरा व्यक्तिगत राय है। यह वोट की राजनीति के लिए सही है, लेकिन देश के लिए सही नहीं है।
यू-टर्न क्यों
राजनीतिक जानकारों के अनुसार नारायण त्रिपाठी सियासी फायदे के लिए इस तरह की राजनीति कर रहे हैं। नारायण त्रिपाठी सत्ता से बहुत दूर तक नहीं रह सकते हैं। जानकारों के अनुसार, नारायण त्रिपाठी का नाम हनीट्रैप मामले में है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी के नेताओं के पास नारायण की कमजोरी है जिस कारण समय-समय पर वो अपना रूख बदलते रहते हैं।
हनीट्रैप की सीडी का डर?
नारायण त्रिपाठी के बारे में कहा जा रहा है कि जब वो पहली बार कांग्रेस के पक्ष में गए थे उसकी वजह हनीट्रैप कांड में उनकी एक सीडी है। कांग्रेस ने उस सीडी को वायरल करने की बात कही थी जिसके बाद नारायण त्रिपाठी ने अपना पाला बदला लिया था और कांग्रेस सरकार के पक्ष में वोटिंग की थी। उसके बाद कहा गया कि ये नारायण की एक सीडी भाजपा नेताओं के पास थी जिसे वायरल होने के डर से उन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा के साथ पार्टी कार्यालय पहुंचे गए थे।
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चार्जशीट में नाम
हनीट्रैप मामले में जब एसआईटी ने कोर्ट में चालान जमा किया तो इस चालान में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए। बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी का नाम का नाम इस चार्जशीट में था। चार्जशीट में साक्षी भटनागर नाम की एक लड़की ने विधायक पर बेहद ही संगीन आरोप लगाए। पुलिस ने कोर्ट में जो सैकड़ों पन्नों का चालान पेश किया था उसमें चारू उर्फ साक्षी भटनागर नाम की एक लड़की का बयान दर्ज है। चारू के बयान के मुताबिक श्वेता विजय जैन ने उसे बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी के फ्लैट पर भेजा था। साथ ही उसने यह भी पुलिस को बताया है कि बिना मेरी जानकारी के ही इनलोगों ने विधायक के साथ मेरा वीडियो बना लिया था। इस दौरान विधायक नारायण त्रिपाठी ने 15 हजार रुपए भी दिए थे। अब अपने आपको बचाने के लिए नारायण त्रिपाठी ने एक बार फिर से अपनी ही पार्टी में विरोध का बिगुल फूंका है।
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सीएम पहुंचे थे मुलाकात करने
हाल ही में नारायण त्रिपाठी के पिता का निधन हो गया है। नारायण त्रिपाठी के पिता के निधन पर सीएम कमलनाथ ने ट्वीट कर शोक प्रकट किया था। उसके बाद सीएम उनके पैतृक गांव भी पहुंचे थे। तब से अटकलें लगाई जा रही थी कि नारायण त्रिपाठी फिर कोई नया रूख अपना सकते हैं।
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कमलनाथ सरकार स्थायी?
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि नारायण त्रिपाठी सत्ता से दूर रहने वाले विधायक नहीं है। झाबुआ उपचुनाव में जीत के बाद कमलनाथ सरकार स्थायी दिखाई दे रही है। ऐसे में नारायण त्रिपाठी को यह लग रहा है कि कांग्रेस की सरकार पांच साल तक अपने कार्यकाल को पूरा करेगी। जिस कारण नारायण त्रिपाठी का झुकाव कांग्रेस की तरफ हो रहा है।
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नारायण त्रिपाठी का राजनैतिक जीवन
नारायण त्रिपाठी 2003 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर पहली बार विधायक बने। 2008 का चुनाव नारायण त्रिपाठी ने फिर से समाजवादी पार्टी के टिकट से लड़ा पर इस बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा और वो तीसरे नंबर पर रहे। 2013 का चुनाव उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और जीत गए। उसके बाद वो 2016 में विधायकी से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए। उसके बाद उपचुनाव हुआ और नारायण त्रिपाठी भाजपा की टिकट से मैदान में उतरे और जीत दर्ज की। उसके बाद 2018 का चुनाव उन्होंने भाजपा के टिकट पर लड़ा और जीत दर्ज की। इस बार जीत के बाद उन्होंने पार्टी तो नहीं छोड़ी पर दो बार कांग्रेस का समर्थन कर चुके हैं।
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