दरअसल, विकास के राजनीतिक रसूख का अंदाजा इससे भी लगा सकते हैं कि कुछ समय के अंदर वह ब्राह्मण चेहरे के रूप में तेजी से उभर गया, उसके एनकाउंटर पर ब्राह्मण नेताओं के सामने बड़ा संकट खड़ा हो सकता था। सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ धारणा बनाई जा सकती थी। वैसे भी यूपी में हाता और मठ की लड़ाई को ब्राह्मण बनाम क्षत्रीय माना जाता है। योगी आदित्यनाथ जब सत्ता में आते हैं तो सबसे पहले उन्होंने यूपी के बाहुबली और पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी के आवास यानी हाता पर दबिश दिलवाई थी। इसके बाद यूपी में ब्राह्मणों का बड़ा तबका योगी से नाराज हो गया और बीजेपी को डैमेज कंट्रोल करने के लिए गोरखपुर सीट से हुए उपचुनाव में ब्राह्मण चेहरे को मैदान में उतारना पड़ा, फिर भी योगी की इस सीट पर बीजेपी को हार मिली थी। इसके बाद बीजेपी ने कई ब्राह्मण चेहरों को महत्वपूर्ण स्थान दिया। हालांकि योगी को अब भी ब्राह्मणों का एक बड़ा तबका नापसंद करता है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा यह भी है कि विकास दुबे को सरेंडर कराने में उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के कई बड़े ब्राह्मण नेताओं और अधिकारियों ने भूमिका निभाई है। ये नहीं चाहते थे कि विकास पुलिस के हत्थे चढ़े और उसे एनकाउंटर में मार दिया जाए। इसलिए जिस अंदाज में महाकाल मंदिर में उसे गिरफ्तार किया गया, उससे लगता है इसके पीछे एक सोची समझी रणनीति है।