11-12 जनवरी को दिल्ली के रामलीला मैदान में बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकरिणी की बैठक आयोजित की गई थी। इस बैठक के ठीक पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया और छत्तीसगढ़ की पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह को पार्टी का नया उपाध्यक्ष नियुक्त किया। बीजेपी आलाकमान की तरफ से उठाए गए इस कदम को लेकर हर तरफ चर्चा हो रही है कि लोकसभा चुनाव से पहले शिवराज सिंह चौहान को उपाध्यक्ष क्यों नियुक्त किया गया है। जबकि मध्यप्रदेश के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के करीबी आदमी माने जाते हैं।
माना जा रहा था कि मध्यप्रदेश की सत्ता से बाहर होने के बाद , भाजपा शिवराज सिंह चौहान को नेता प्रतिपक्ष बना सकती है। पर ऐसा नहीं हुआ। हालांकि शिवराज सिंह चौहान ने हार के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए कहा था कि वह केन्द्रीय राजनीति में नहीं जाएंगे मध्यप्रदेश के लिए ही जीएंगे और मरेंगे। इसके बाद भी शिवराज सिंह चौहान को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाया गया। माना जा रहा था कि आलाकमान प्रदेश में सवर्णों की नाराजगी दूर करने के लिए ऐसा कदम उठा सकती है। इसी कारण से शिवराज को दरकिनार कर भाजपा ने पार्टी के वरिष्ठ नेता गोफाल भार्गव को मध्यप्रदेश का नेता प्रतिपक्ष नियुक्त किया था। गोपाल भार्गव के नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद से ही यह माना जाने लगा था कि मध्यप्रदेश में अब भाजपा ने शिवराज के खिलाफ शिकंजा कसना शुरू कर दिया है।
हार के बाद बहुत सक्रिय थे शिवराज
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में हार के बाद शिवराज सिंह चौहान अतिसक्रिय दिखे। शिवराज सिंह चौहान सोशल मीडिया में भी खूब सक्रिय दिखे उसके साथ ही उन्होंने क्षेत्रों का दौरा शुरू किया। सोशल मीडिया में पोस्ट की। कभी मोटरसाइकिल में घूमे तो कभी ट्रेन में, सड़क पर ही ‘भांजों’ का जन्मदिन मनाया तो कभी रैन बसेरों का भी दौरा किया। प्रदेश में पहली तारीख को वंदेमातरम नहीं होने पर उन्होंने शिवराज सरकार पर जमकर हमला बोला और मत्रालय के सामने राष्ट्रगीत का गायन किया। शिवराज ने मध्यप्रदेश में हार के बाद भी ‘आभार यात्रा’ निकालने की बात कही। शिवराज इस यात्रा के सहारे प्रदेश में एक बार फिर से अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते थे पर आलाकमान ने शिवराज सिंह की आभार यात्रा को ठंडे विस्तर में डाल दिया। जानकारों का कहना है कि शिवराज सिंह की आभार यात्रा को शुरू करने की अनुमति नहीं देकर यह संकेत दिया था कि अब शिवराज को मध्यप्रदेश से बाहर निकला होगा।