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शिव ‘राज’ के लिए दो महीने पहले शुरू हुई थी प्लानिंग, आखिरी वक्त में ‘मामा’ के नाम पर मुहर

locationभोपालPublished: Mar 24, 2020 04:07:16 pm

Submitted by:

Muneshwar Kumar

 
इस वजह से पीएम मोदी की पसंद बनें शिवराज सिंह चौहान

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भोपाल/ शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार मध्यप्रदेश की कमान संभाल ली है। देखने में तो यह जरूर लग रहा है कि सिंधिया के बगावत के बाद उनके सत्ता उनके हाथ में चला आया। लोगों के सामने जो चीजें हैं, वह 18 दिन के घटनाक्रम की है। सियासी जानकार मानते हैं कि मध्यप्रदेश में शिव ‘राज’ लाने के लिए पहले से ही प्लानिंग चल रही थी।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इसकी तैयारी दो महीने पहले शुरू हो गई थी। कांग्रेस में सरकार बनने के बाद से ही गुटबाजी चरम पर थी। पार्टी और सरकार कई खेमे में बंटी थी। बीजेपी ने इस मौके को कैश करवाने की प्लानिंग की। बताया जाता है कि दो महीने पहले दिल्ली ने शिवराज सिंह चौहान को बुलाकर ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी में लेने और दूसरे विधायकों से संपर्क साधने की जिम्मेदारी दी।
तय नहीं था कि शिवराज ही बनेंगे सीएम

पार्टी ने उस वक्त शिवराज सिंह चौहान को सिर्फ इतना ही काम सौंपा था। लेकिन सीएम वहीं होंगे, इसे लेकर उन्हें कोई आश्वासन नहीं दिया गया था। ऐसे में शिवराज सिंह चौहान भी इसे टास्क समझ काम में लग गए थे। प्रदेश में जोड़-तोड़ की राजनीति के दौरान कई कांग्रेस विधायकों ने यह आरोप भी लगाया था कि शिवराज सिंह चौहान खुद ही फोन कर उन्हें प्रलोभन दे रहे हैं लेकिन किसी ने कोई सबूत नहीं दिए थे।
इस बार करना पड़ा संघर्ष

इस बार शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री बनने की कहानी पिछले तीन बार से अलग है। पहली बार वे उमा भारती और बाबूलाल गौर के हटाए जाने के बाद मुख्यमंत्री बनाए गए। दूसरी और तीसरी बार चुनाव में घोषित मुख्यमंत्री उम्मीदवार थे। चौथी बार उन्हें दल में ही दावेदारों से संघर्ष करना पड़ा। कांग्रेस सरकार गिराने की स्क्रिप्ट जब दिल्ली में लिखी जा रही थी, तब भाजपा इस पर भी विचार कर रही थी कि अगला सीएम कौन होगा।
पीएम की पसंद हैं शिवराज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते थे कि शिवराज को मौका दिया जाए, लेकिन गृह मंत्री अमित शाह और कुछ नेताओं की इच्छा थी कि इससे लीडरशिप डेवलप नहीं होगी। नए चेहरे को मौका मिले। शिवराज सिंह चौहान के साथ केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा सीएम पद के दावेदार थे। इस बीच थावरचंद गेहलोत का नाम भी चर्चा में आया।
अनुभव का मिला फायदा

वहीं, ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा में लाने का श्रेय केंद्रीय संगठन और खासकर अमित शाह को है। पार्टी ऐसे मौके पर सत्ता की कमान ऐसे अनुभवी चेहरे को देना चाहती थी जो सभी को साथ लेकर चल सके। भाजपा के सामने 24 उपचुनाव की चुनौती भी है। ऐसे में पार्टी नेतृत्व को शिवराज सबसे बेहतर नजर आए।
कोरोना की वजह से जल्दी हुई ताजपोशी

शिवराज सिंह चौहान की ताजपोशी कोरोना वायरस की वजह से जल्दी की गई। वो भी बिल्कुल सादगी के साथ। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना वायरस को लेकर एक दिन की भी रिस्क नहीं लेना चाहते थे। इसलिए उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिए विधायकों की सहमति लेने का फॉर्मूला सुझाया।
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