जिसके बाद अब मध्यप्रदेश सहित देश के कुछ जगहों पर चुनाव बहुत ही दिलचस्प हो सकते हैं। सामने आ रही सूचना के अनुसार ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बार गुना की जगह ग्वालियर लोकसभा सीट से खड़े हो सकते हैं। उन्हें गुना में अनुकूल चुनावी परिस्थितियां नहीं दिख रही हैं।
वहीं ग्वालियर में भाजपा एक लंबे समय से अपनी मजबूती बनाई हुई है और ऐसे में भाजपा हर कीमत पर इस सीट को बचाने की कोशिश करेगी। जबकि ज्योतिरादित्य को काफी हद तक जनता आज भी महाराज मानती है। ऐसे में ग्वालियर में होने वाली भाजपा कांग्रेस की भिडंत कई मामलों में दिलचस्प हो सकती है।
ऐसे समझें पूरा मामला…
सर्वे रिपोर्ट ने सिंधिया को चौंका दिया है। गुना में अंदरूनी विरोध से नुकसान होने की आशंका को देखते हुए सिंधिया अब ग्वालियर जा सकते हैं।
अभी तक सिंधिया और उनकी पत्नी प्रियदर्शिनी सिंधिया ने गुना संसदीय क्षेत्र में फोकस कर रखा था। संभावना जताई जा रही है कि राहुल गांधी से चर्चा के बाद सिंधिया ग्वालियर से उतरेंगे।
इधर, अलबेला होगा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल का मुकाबला…
वहीं दूसरी ओर इस बार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का मुकाबला भी अलबेला माना जा रहा है। दरअसल अमेठी नेहरू-गांधी परिवार का गढ़ रहा है। 1967 से अब तक सिर्फ एक बार जनता पार्टी और एक बार भारतीय जनता पार्टी को अमेठी में जीत नसीब हुई है।
सपा-बसपा ने इस बार अमेठी सीट कांग्रेस के लिए छोड़ दी है। 2014 के चुनाव में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी भले ही अमेठी से चुनाव हार गई थीं, पर वे यहां सक्रिय हैं। इस सीट पर वर्तमान सांसद व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और स्मृति ईरानी के बीच टक्कर की संभावना है।
प्रमुख मुद्दे : बाइपास का निर्माण (4 किमी) आवारा पशुओं की समस्या बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य।
सीट की वर्तमान राजनीतिक स्थिति
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी वर्तमान में अमेठी से सांसद हैं। इससे पहले भी वह दो बार इस सीट से सांसद चुने गए। 2014 के बाद राहुल गांधी आधा दर्जन से अधिक बार अमेठी आ चुके हैं।
राहुल ने कई स्कूलों में मिनरल वाटर के साथ ही मंदिरों-मजारों पर सोलर लाइट लगवाई। मलिक मोहमद जायसी शोध संस्थान के लिए भी पैसा दिया। क्षेत्रों में करीब 400 इंडिया मार्का हैंडपप भी लगवाए हैं।
सीट का राजनीतिक भविष्य
अमेठी सीट पर राहुल गांधी ही कांग्रेस के लोकसभा प्रत्याशी हैं। सपा-बसपा गठबंधन ने अमेठी सीट कांग्रेस के लिए छोड़ रखी है। ऐसे में इस सीट पर कांग्रेस का मुकाबला भाजपा से है।
पिछले चुनाव में राहुल ने स्मृति ईरानी को एक लाख से अधिक मतों से हराया था। हार के बावजूद स्मृति ईरानी का अमेठी आना कम नहीं हुआ। किसी न किसी योजना के बहाने वह यहां कांग्रेस और राहुल गांधी को घेरती रहीं हैं।
मध्यप्रदेश में तगड़े बदलाव…
ज्योतिरादित्य सिंधिया की सीट में बदलाव के अलावा बताया जाता है कि दिग्विजय सिंह को राजगढ़ की बजाय भोपाल से चुनाव लडऩे को कहा गया है। वे राजगढ़ के लिए इच्छुक थे, पर उन्हें जिताऊ चेहरे के रूप में भोपाल लाया जा रहा है। अजय सिंह सतना छोड़ सीधी की राह पर बढ़ चले हैं। पहले वे सतना सीट के लिए प्रयास कर रहे थे।
दिल्ली में हुए मंथन के बाद इन नेताओं को ऐसे संकेत दिए गए हैं। राजगढ़ का उम्मीदवार तय करने की जिम्मेदारी दिग्विजय के अलावा मंत्री जयवद्र्धन सिंह, प्रियव्रत सिंह और विधायक लक्ष्मण सिंह पर छोड़ दी गई है। सुंदरलाल तिवारी के निधन के बाद अब रीवा में दूसरे ब्राह्मण नेता की तलाश की जा रही है।
बहुत कुछ इधर भी खास…
बड़ा जिताऊ चेहरा: पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का नाम पहले राजगढ़ से तय माना जा रहा था, लेकिन कांग्रेस को भोपाल सीट के लिए बड़ा जिताऊ चेहरा नहीं मिल पाया।
ऐसे में दिग्विजय को इस सीट पर उतारने की चर्चा है। पार्टी ने दिग्विजय को इस बात के संकेत दे दिए हैं कि वे भोपाल से अपनी तैयारी कर लें। हालांकि इसका अंतिम फैसला दिल्ली दरबार से ही होगा।
अजय ने पकड़ी सीधी की राह: पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह सतना सीट से चुनाव लडऩे की तैयारी में थे। पिछले लोकसभा चुनाव में वे सतना से कम अंतर से हारे थे। पार्टी ने उन्हें सीधी से लडऩे की सलाह दी है। सर्वे में आया कि सतना में अजय का विरोध है, जिससे परेशानी आ सकती है।
प्रदेश में हुए सर्वे के आधार पर उम्मीदवार तय किए जा रहे हैं। कौन-कहां से चुनाव लड़ेगा, ये केंद्रीय चुनाव समिति तय करेगी। पूरी परिस्थितियों को देखकर ही जिताऊ उम्मीदवार तय किए जाएंगे।
– दीपक बावरिया, प्रदेश प्रभारी कांग्रेस