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इस बार मनाया जाएगा 32 साल क जश्न
इस दिन का उद्देश्य ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की याद दिलाता है। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को आप इस तरह भी समझ सकते हैं कि ये वियना संधि के तहत ओजोन परत के संरक्षण के लिए सभी देशों के द्वारा लिया गया एक प्रण है, ताकि पृथ्वी पर जीवन को सुरक्षित रखा जा सके। हर साल ओजोन लेयर को संरक्षित रखने के लिए अलग अलग थीम तैयार की जाती है। ये थीन मौजूदा समय पर आधारित होती है, ताकि लोगों को इसका महत्व गहराई से समझ आ सके। इस साल भी इसे एक खास नाम दिया गया है। इस बार की ओजोन थीम का नाम ’32 years and Healing’ है। इस थीम के जरिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत दुनियाभर के देशों द्वारा ओजोन परत के संरक्षण और जलवायु की रक्षा के लिए तीन दशकों से किए जा रहे प्रयासों को सिलेब्रेट किया जाएगा।
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ओज़ोन परत नष्ट होने के नुकसान
वर्ष 2018 में ओजोन डिप्लेशन का लेटेस्ट साइंटिफिक असेसमेंट पूरा हुआ। इस दौरान हुए आकलन में इस बात का खुलासा हुआ कि, साल 2000 के बाद से ओजोन परत के क्षतिग्रस्त हिस्से में हर दशक के हिसाब से 1 से 3 फीसदी की दर से रिकवरी हुई है। ओजोन परत का निर्माण ऑक्सिजन के तीन एटम से मिलकर होता है। ये बहुत अधिक प्रतिक्रियाशील गैस है और इसे O3 के जरिए प्रजेंट किया जाता है। इसका निर्माण प्राकृतिक रूप से भी होता है और ह्यूमन ऐक्टिविटीज से भी। इसका सबसे ज्यादा नुकसान मानव निर्मित उन कैमिकल्स से होता है, जो क्लोरीन या ब्रोमीन होता है। इन रसायनों को ओजोन डिप्लेटिंग सब्सटेंस (OSD) भी कहा जाता है। इसकी बढ़ोतरी होने पर परत को नुकसान पहुंचने लगता है। इस नुकसान के कारण सूर्य की हानिकारक किरणें पृथ्वी पर पहुंचकर वायुमंडल को नुकसान पहुंचाने लगती हैं, जो कई बीमारियों का कारण बनता है। कैंसर इनमें मुख्य बीमारी है।
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ओजोन परत से जुड़ी खास बातें
ओजोन परत के बारे में सबसे पहले साल 1913 में जाना गया था। इसकी खोज फ्रांस के भौतिकविदों फैबरी चार्ल्स और हेनरी बुसोन द्वारा की गई कड़ी रिसर्च से हुई थी। बता दें कि, ओजोन एक तरह की गैस की परत है, जो पृथ्वी को सूरज की हानिकारक किरणों से बचाती है। ये गैस की परत सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों को फिल्टर करके धरती पर पहुंचाती है, जो यहां हर तरह के जीवन की रक्षा करती है।ओजोन एक हल्के नीले रंग की गैस है। ओजोन परत में वायुमंडल के अन्य हिस्सों के मुकाबले ओजोन (O3) की उच्च सांद्रता होती है। यह परत मुख्य रूप से समताप मंडल के निचले हिस्से में पृथ्वी से 20 से 30 किलोमीटर की उंचाई पर पाई जाती है। परत की मोटाई मौसम एवं भूगोल के हिसाब से रहती है और जिन इलाकों में प्रदूषण ज्यादा होता है, वहां इसकी परत कम हो जाती है।