scriptधन-संपदा भी वहीं ठहरती है, जहां धर्म रहता है: आचार्य आर्जव सागर महाराज | jain sant | Patrika News

धन-संपदा भी वहीं ठहरती है, जहां धर्म रहता है: आचार्य आर्जव सागर महाराज

locationभोपालPublished: Oct 20, 2019 11:18:39 pm

अशोका गार्डन जैन मंदिर में तीर्थोदय काव्योपरि सम्यग्ज्ञान संवर्धन राष्ट्रीय विद्वान संगोष्ठी, चातुर्मास के तहत हो रहा आयोजन, आर्जव सागर शास्त्र का विमोचन किया गया

धन-संपदा भी वहीं ठहरती है, जहां धर्म रहता है: आचार्य आर्जव सागर महाराज

धन-संपदा भी वहीं ठहरती है, जहां धर्म रहता है: आचार्य आर्जव सागर महाराज

भोपाल. अशोका गार्डन स्थित जैन मंदिर में आचार्य आर्जव सागर महाराज के सान्निध्य में चातुर्मास चल रहा है। इसके तहत अनेक आयोजन किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में तीर्थोदय काव्योपरि सम्यग्ज्ञान संवर्धन राष्ट्रीय विद्वान संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। इस संगोष्ठी के आखिरी दिन महिला मंडल ने मंगलाचरण की प्रस्तुति दी। संगोष्ठी में तीर्थोदय काव्य पर विद्वानों द्वारा शोधपरक कई आलेखों के बाद आध्यात्मिक संत आर्जव सागर नामक नवीन शास्त्र का विमोचन किया गया।
जो धर्म का पालन करते हैं, धर्म उनकी रक्षा करता है
इस मौके पर आचार्य आर्जव सागर महाराज ने धर्म के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि धर्म से ही सभी प्रकार के सुख मिलते हैं। जो धर्म का पालन करते हैं, धर्म उनकी रक्षा करता है। धन संपदा भी वहीं ठहरती है, जहां धर्म रहता है। परस्पर एक दूसरे का उपकार करना प्राणी मात्र का धर्म है। जब दया को ही धर्म का मूल कहा है तो जहां अहिंसा या दया नहीं है, वहां धर्म नहीं है। अहिंसा के बिना धर्म का कथन कागज के पुष्प के समान धर्म की नकल मात्र है। अहिंसा ही परमधर्म है। जैन आचार्य ने कहा कि जीवन में पुण्य भी बिना धर्म किए नहीं आता इसलिए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पुरुषार्थों में प्रथम स्थान धर्म को प्राप्त है अत: धर्म करो।
जीवों के प्रति दया, करुणा रखने का संदेश
इस मौके पर आचार्य आर्जव सागर महाराज ने विद्यासागर पाठशाला के बच्चों के लिए संदेश दिया कि हमेशा जीवों के प्रति दया करूणा भाव रखना। उसके लिए पुण्य कि आवश्यकता होती है, हमें धर्म नहीं छोडऩा चाहिए। इसलिए कहा भी है कि धर्म कि रक्षा करने से पुण्यकर्म उनकी रक्षा करेंगे।
मंदिर भावनाओं को शुद्ध बनाने का पॉवर हाउस
इससे पूर्व शनिवार को महाराज ने प्रवचन में कहा था कि मंदिर भावनाओं को शुद्ध बनाने का पावर हाउस है। यहां से भक्त अपनी ऊर्जा शक्ति को पाप से हटाकर आत्म कल्याण की तरफ ले जाता है। उन्होंने कहा कि हमें यह प्रयास करना होगा कि जिस प्रकार मंदिर और सत्संग में हमारी भावना शुद्ध हो जाती है वही भावना सांसारिक जगत अर्थात अपने गृहस्थ जीवन में भी बरकरार रहे। तभी तो अशुभता से शुभता कि तरफ अधिक कदम बढ सकेंगे। जितनी शुभ भावना में वृद्धि होगी, समझ लेना उतनी ही हम धर्म की असली पूंजी कमा रहे हैं।

ट्रेंडिंग वीडियो