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देशभक्ति के संदेश के साथ सैनिकों के लिए भेजी राखियां

locationभोपालPublished: Aug 05, 2018 09:45:28 am

Submitted by:

Bhalendra Malhotra

पिपलानी जैन मंदिर से सरहद पर तैनात जवानों के लिए एक हजार राखियां रवाना

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देशभक्ति के संदेश के साथ सैनिकों के लिए भेजी राखियां

भोपाल. अखिल भारतीय दिगम्बर महिला परिषद मैना सुंदरी संभाग की ओर शनिवार को सरहद पर देश की रक्षा करने वाले सैनिक भाइयों के लिए जैन समाज की बहनों ने राखियां भिजवाईं। इसके साथ ही महिलाओं ने देश भक्ति का संदेश दिया। यह सूती राखियां हैं जो हथकरघा के जरिए तैयार की गई हैं। इस पर आचार्य विद्यासागर महाराज का इंडिया नहीं भारत कहो का संदेश भी है।

इस आयोजन के दौरान परिषद की महिलाओं ने राखियों के साथ-साथ सैनिकों को राखी की शुभकामनाएं भी भेजी हैं। महिला जैन परिषद की वंदना सिंघई ने बताया कि परिषद की सभी दस शाखाओं की ओर से यह राखियां सैनिक भाईयों को भेजी जा रही है, ताकि वे भी रक्षाबंधन का पर्व धूमधाम से मना सके। यह राखियां सागर जेल में कैदियों द्वारा तैयार की गई है। आचार्य विद्यासागर महाराज ने सागर में जेल में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कैदियों को स्वावलंबन अपनाने के लिए हथकरघा का प्रशिक्षण दिया गया था। लगभग दो हजार कैदियों ने हथकरघा का प्रशिक्षण लिया था। उन कैदियों द्वारा ही ये राष्ट्रभक्ति पर आधारित राखियां तैयार की गई है।

 

चौक जैन मंदिर में मूक माटी महाकाव्य की वाचना, बड़ी संख्या में पहुंच रहे श्रद्धालु

जीवन में संगति का असर जड़ पदार्थों पर भी पड़ता है, हम तो चेतन रूप हैं। असंयमी, रागी द्वेषी व्यक्ति के साथ रहने पर संस्कारवान धार्मिक व्यक्ति की जवीन शैली पर भी प्रभाव पड़ता है। प्रकृति, पेड़-पौधे भी जब विषैली गैस, धुआं, प्रदूषित पदार्थों के बीच आते हैं तो वे भी मुरझा जाते हैं और उनका पतन हो जाता है वैसे ही विपरीत स्वभाव के जीव के साथ सकारात्मक भाव धारण करने वाले जीव के भाव विपरीत हो जाते हैं।

चौक जैन धर्मशाला में आचार्यश्री विद्यासागर महाराज द्वारा रचित महाकाव्य ‘मूक माटीÓ की व्याख्या करते हुए, मुनिश्री विद्यासागर महाराज ने यह बात कहीं। उन्होंने कहा कि जैसी संगति होगी, वैसी मति होगी, और मति जैसी होगी वैसी गति होगी अर्थात् वैसी ही दिशा मिलेगी। मुनिश्री ने कहा कि अपने को जो बड़ा मानता है, वह धर्म से दूर खड़ा है, क्योंकि धार्मिक व्यक्ति स्वयं को सबसे छोटा मानते हुए विनम्रता, सहजता, सरलता धारण किए होता है। इस प्रकार जीवन को लघु बनाने का प्रयास करना चाहिए, लघुता से ही प्रभुता की प्राप्ति होती है।

धरती माटी से कहती है कि तुम्हारी पावन पवित्र विचारशैली में आत्मा की पवित्रता झलक रही है, जब तक हम स्वयं में पवित्रता के साथ परिणामों में सहजता, सरलता, स्वभाव में निर्मलता, विनम्रता धारण नहीं करेंगे तो हम न अपना कल्याण कर पाएंगे और न ही सत्य की खोज कर पाएंगे। जैसे हम पीतल को पीतल रूप में नहीं समझेंगे तो स्वर्ण को कैसे पहचानेंगे, क्योंकि दोनों का रंग तो एक ही होता है। मुनिश्री ने कहा कि शिखर को छूना चाहते हो तो साधना के साचे में सहर्षपूर्वक हर्ष रूप ढालना होगा । सम्यक दर्शन के माध्यम से हम सातों तत्वों को तो समझ सकते हैं पर मोक्ष तत्व को पाने के लिये सम्यक चारित्र का होना अत्यंत आवश्यक है । इस मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।

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