भोपाल। इंसान तो इंसान भगवान पर भी चोरी का झूठा इल्जाम लग चुका है। ऐसा ही एक रोचक प्रसंग भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा है। इसका उल्लेख श्रीमदभगवत पुराण में भी मिलता है। इसके मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण पर एक स्यमंतकामिनी मणि चुराने का आरोप लगा था। हालांकि यह आरोप गलत था। इसलिए अपने ऊपर लगे आरोप को गलत साबित करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण खुद ही इस मणि की तलाश में निकल गए थे। यह मणि जामवंत नाम के उनके पूर्व जन्म के भक्त के पास था। जब वे मणि लेने पहुंचे तो जामवंत उन्हें नहीं पहचान पाए और युद्ध करने लगे। 28 दिन चले युद्ध के बाद उन्हें पता चला कि श्रीकृष्ण प्रभु श्रीराम के ही अवतार हैं, तब युद्ध रुक गया। जामवंत ने अपनी हार स्वीकार कर ली। इसके बाद अपनी पुत्री जामवंती का श्रीकृष्ण के साथ विवाह कर दिया।
दहेज में दे दिया था मणि
मान्यता है कि जामवंत ने अपनी पुत्री को ही मणि सौंप रखी थी। वह मणि श्रीकृष्ण और जामवंती की शादी में दहेज स्वरूप दे दी गई। इस घटना में जामवंत को प्रभु के दर्शन हो गए और श्रीकृष्ण के ऊपर लगा चोरी का दाग भी साफ हो गया।
महाभारत काल में भी थे जामवंत
-महाबली जामवंत त्रेता युग के रामायण काल में भी थे और द्वापर युग के महाभारत काल में भी थे।
-रामायणकाल में वे विष्णु अवतार श्रीराम के प्रमुख सहायकों में से एक थे, वहीं महाभारतकाल में उन्होंने विष्णु अवतार श्रीकृष्ण से युद्ध लड़ा था।
मध्यप्रदेश में मिले इसके प्रमाण
राजधानी भोपाल के पास रायसेन जिले में महाभारत काल के प्रमाण मिले हैं। यहां भगवान श्रीकृष्ण आए थे और उन्होंने 28 दिनों तक जामवंत के साथ युद्ध किया था। जामगढ़ नाम का यह गांव विन्ध्यांचल पर्वत श्रृंखला के बीच में है।
यहां हुआ था युद्ध
यह स्थान भोपाल-जबलपुर हाईवे पर बरेली कस्बे से 15 किलोमीटर दूर है। धार्मिक ग्रंथ प्रेमसागर में इसका उल्लेख है। गुफा के इतिहास को कुरेदने और किंवदंतियों की सच्चाई को जानने कई पुरातत्वविदों ने यहां और अध्ययन किया। फिलहाल देखरेख के अभाव में जामवंत की गुफा संकरी हो चुकी है। इस गुफा के आगे कई और छोटी गुफाएं हैं। इन गुफाओं की श्रृंखला प्राकृतिक शिव गुफा पर समाप्त होती है।
आखिर क्यों लगा था चोरी का आरोप
द्वापर युग में सत्राजित नाम का एक राजा था, जिसने सूर्यदेव को प्रसन्न कर स्यमंतक मणि प्राप्त कर ली थी। माना जाता था कि जिसके पास ङी यह चमत्कारिक मणि होगी, उसके जीवन में कोई परेशानी नहीं आती है। एक बार राजा के मुकुट में लगी यह मणि श्रीकृष्ण ने देख ली। उन्होंने कहा कि इस चमत्कारिक मणि के असली हकदार तो राजा उग्रसेन हैं। इस पर सत्राजित ने यह मणि को महल के मंदिर में स्थापित कर दिया।
-इसके बाद सत्राजित के भाई स्यमंतक मणि लेर शिकार पर चले गए। लेकिन शेर ने उन्हें मार डाला। मणि शेर के पेट में चले गई।
-दूसरी तरफ से जामवंत भी शिकार पर आए और उन्होंने शेर का शिकार कर लिया, तो वह मणि उनके पास चले गई।
– जब जामवंत ने उसी शेर का शिकार किया तो यह मणि उनके पास चले गई। हालांकि वे इस मणि को नहीं समझ पाए और उन्होंने इसे अपने बेटे को खेलने के लिए दे दिया।
इन्होंने लगाया था झूठा इल्जाम
राजा सत्राजित को अपने भाई की मौत का असली कारण नहीं पता चल पाया था। इसलिए उन्होंने श्रीकृष्ण पर मणि चोरी का आरोप लगा दिया।
-भगवान इस बात से काफी आहत हो गए, वे वन की तरफ चले गए और सत्राजित के भाई प्रसेनजित के शव को देखा। उन्हें मणि आसपास भी नहीं मिला।
-वहां पर शेर के पैरों के निशान देखे और रीछ के पांव के निभान भी दिखे। इस पर वे रीछ के पैरों के निशानों को ढंढते हुए एक गुफा तक आ गए। इस गुफा में जामवंत रहते थे।
-जब भगवान उस गुफा में दाखिल हुए तो वहां जामवंत का पुत्र मणि के साथ खेल रहा था। जामवंत से जब मणि देने को कहा गया तो उन्होंने साफ मना कर दिया।
-इसके बाद 28 दिनों तक दोनों में युद्ध हुआ और आखिरी दिन पता चला कि श्रीकृष्ण ही श्रीराम के अवतार हैं। तब युद्ध खत्म हो गया। उन्हें अपने भगवान के दर्शन भी हो गए। जामवंत ने अपनी बेटी जामवंती का हाथ श्रीकृष्ण को सौंप दिया। सात में मणि भी।
-जब श्रीकृष्ण महल लौटे तब राजा सत्राजित को वो मणि लौटा दी। इसके बाद उन्हें काफी पश्चाताप हुआ।
इन्होंने लगाया था झूठा इल्जाम
राजा सत्राजित को अपने भाई की मौत का असली कारण नहीं पता चल पाया था। इसलिए उन्होंने श्रीकृष्ण पर मणि चोरी का आरोप लगा दिया।
-भगवान इस बात से काफी आहत हो गए, वे वन की तरफ चले गए और सत्राजित के भाई प्रसेनजित के शव को देखा। उन्हें मणि आसपास भी नहीं मिला।
-वहां पर शेर के पैरों के निशान देखे और रीछ के पांव के निभान भी दिखे। इस पर वे रीछ के पैरों के निशानों को ढंढते हुए एक गुफा तक आ गए। इस गुफा में जामवंत रहते थे।
-जब भगवान उस गुफा में दाखिल हुए तो वहां जामवंत का पुत्र मणि के साथ खेल रहा था। जामवंत से जब मणि देने को कहा गया तो उन्होंने साफ मना कर दिया।
-इसके बाद 28 दिनों तक दोनों में युद्ध हुआ और आखिरी दिन पता चला कि श्रीकृष्ण ही श्रीराम के अवतार हैं। तब युद्ध खत्म हो गया। उन्हें अपने भगवान के दर्शन भी हो गए। जामवंत ने अपनी बेटी जामवंती का हाथ श्रीकृष्ण को सौंप दिया। सात में मणि भी।
-जब श्रीकृष्ण महल लौटे तब राजा सत्राजित को वो मणि लौटा दी। इसके बाद उन्हें काफी पश्चाताप हुआ।