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Patrika 40 under 40: बेटियों! अपने सपनों को पंख दो, सफलता मिलते ही सब साथ होंगे

locationभोपालPublished: Jun 18, 2022 04:45:50 pm

पत्रिका के 40 अंडर 40 की लिटरेचर आर्ट एंड कल्चर श्रेणी में शामिल ज्योति भदौरिया ने दिए बेटियों को सफलता के मंत्र

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समय कितना भी बदला, पर आज भी बेटियों को आजादी नहीं है। परिवार व समाज अपनी इच्छा थोंपना चाहता है। वे क्या बनेंगी, यह पैरेंट्स तय करते हैं। फिर भी हौसला न छोड़ें। आपको जब थोड़ी सफलता मिलेगी तो पूरा परिवार साथ होगा। पत्रिका के 40 अंडर 40 की लिटरेचर आर्ट एंड कल्चर श्रेणी में शामिल ज्योति भदौरिया ने बेटियों को सफलता के मंत्र दिए। उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश…

प्रश्न: आप पढ़ाई में अव्वल हैं। अच्छी आरजे-मॉडल हैं। लिट्रेचर, आर्ट-क्राफ्ट में आगे हैं। सब कैसे मैनेज कर पाती हैं?

उत्तर: आप जो सोचते हैं, वह सब हासिल कर सकते हैं। हमारे पास 24 घंटे होते हैं। इनमें से यदि 6 घंटे सोने के लिए निकाल दें तो 18 घंटे आपके हैं। इसे यूटिलाइज करना आना चाहिए, जिसे मैं बखूबी कर पाती हूं। मेरी हर स्किल को और ज्यादा निखारने का समय फिक्स है। मैं इसे हमेशा फॉलो करती हूं और सब मैनेज कर लेती हूं।

प्रश्न: आपको कितनी लैंग्वेज आती है, कैसे सीखीं, हिंदी को प्रमोट क्यों करती हैं?

उत्तर: हिंदी, इंग्लिश, पंजाबी, उर्दू पर मेरी अच्छी पकड़ है। उर्दू मैने यूट्यूब से और पंजाबी टीवी सीरियल्स के जरिए ही सीखी। मातृभाषा हिंदी ही है। आज का युवा इंग्लिश की ओर भाग रहा है। मातृभाषा को विश्व पटल पर ले जाने के लिए हिंदी को प्रमोट करती हूं।
प्रश्न: आपने इंडिया बुक और एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड बनाए हैं, यह सोच कहां से आई?

उत्तर: मैं सबसे अलग करना चाहती थी। इसलिए गूगल पर भी कुछ न कुछ सर्च करती रहती थी। एक दिन मेरी नजर इस तरह के रिकॉर्ड बनाने वाली कुछ पर्सनॉलिटी पर पड़ी। तब मैंने तय कर लिया और 100 भाषा में ‘हैलो’ बोलकर रिकार्ड बनाया। चूंकि जब हम किसी से मिलते हैं तो हैलो या नमस्ते करते हैं। यह एक तरह का सम्मान का भाव है, इसलिए मैंने रेकॉर्ड के लिए इस शब्द को चुना।
प्रश्न: सपने पूरे करने में महिलाओं की क्या चुनौतियां हैं। आपके जीवन में क्या चुनौती रही?

उत्तर: हमारा समाज आज भी पुरुष प्रधान है। महिलाएं जो करना चाहती हैं, उन्हें फैमिली सपोर्ट नहीं मिलता। मैंने जब मॉडल बनने की बात कही तो सपोर्ट नहीं मिला। हालांकि मैंने अपने सपने पर काम किया। यह भी सही है कि जब आप कुछ करने लगते हैं, फैमिली साथ होती है।
मैंने जो सोचा, उस पर काम किया और सफलता मिली। ग्रेजुएशन के दौरान रेडियो पर आरजे को सुनती थी। सोचती थी, मैं क्यों नहीं बन सकती। घर में प्रैक्टिस की और इंटरव्यू के बाद आरजे इशिका (मेरा निक नेम) बन गई।
– ज्योति भदौरिया, आरजे और मॉडल
पूरा इंटरव्यू देखें आज शाम 5 बजे पत्रिका के फेसबुक पेज

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