यहां से बढ़ता गया सियासी तनाव
13 फरवरी को सिंधिया ने टीकमगढ़ में कहा कि वचन पत्र पूरा नहीं हुआ तो वे अतिथि शिक्षकों के साथ सड़क पर उतरेंगे। तत्कालीन सीएम कमलनाथ को यह बात रास नहीं आई। 14 फरवरी को कमलनाथ भी कहा, सड़क पर उतरना है तो उतर जाएं। बस यहीं से कमलनाथ को सत्ता से उतारने की इबारत लिखी जाने लगी।
13 फरवरी को सिंधिया ने टीकमगढ़ में कहा कि वचन पत्र पूरा नहीं हुआ तो वे अतिथि शिक्षकों के साथ सड़क पर उतरेंगे। तत्कालीन सीएम कमलनाथ को यह बात रास नहीं आई। 14 फरवरी को कमलनाथ भी कहा, सड़क पर उतरना है तो उतर जाएं। बस यहीं से कमलनाथ को सत्ता से उतारने की इबारत लिखी जाने लगी।
इसके बाद न तो सिंधिया किसी से मिले और न किसी ने उनसे मिलने में रुचि दिखाई। 10 मार्च को सिंधिया ने भाजपा में शामिल होकर जता दिया कि उन्हें न मनाना कांग्रेस को कितना भारी पड़ा। इससे पहले 2 मार्च को दिग्विजय के हॉर्स ट्रेडिंग के बयान ने भी आग में घी का काम किया था।
राज्यसभा चुनाव भी बड़ी वजह
राज्यसभा चुनाव की वजह से भी सिंधिया-कमलनाथ में दूरियां बढ़ने लगीं थीं। मध्यप्रदेश में जब कांग्रेस स्थिर थी, तब 3 राज्यसभा सीटों में से 2 पर उसके उम्मीदवार जीतना तय थे। पहली उम्मीदवारी दिग्विजय सिंह की थी। दूसरा नाम ज्योतिरादित्य का सामने आया। कहा जाता है कि सिंधिया के नाम पर प्रदेश के कई नेता तैयार नहीं थे। यही बात उन्हें खटक गई।
राज्यसभा चुनाव की वजह से भी सिंधिया-कमलनाथ में दूरियां बढ़ने लगीं थीं। मध्यप्रदेश में जब कांग्रेस स्थिर थी, तब 3 राज्यसभा सीटों में से 2 पर उसके उम्मीदवार जीतना तय थे। पहली उम्मीदवारी दिग्विजय सिंह की थी। दूसरा नाम ज्योतिरादित्य का सामने आया। कहा जाता है कि सिंधिया के नाम पर प्रदेश के कई नेता तैयार नहीं थे। यही बात उन्हें खटक गई।