सादगी ऐसी कि हर कोई चौंक जाए…
कैलाश जोशी में इतनी सादगी थी कि उनके पास एक कार तक नहीं थी। 17 मई, 1981 को कैलाश जोशी लगातार पांचवी बार बागली से विधायक बने। इसके लिए कार्यकर्ताओं ने कैलाश जोशी का सम्मान कार्यक्रम रखा।
कैलाश जोशी में इतनी सादगी थी कि उनके पास एक कार तक नहीं थी। 17 मई, 1981 को कैलाश जोशी लगातार पांचवी बार बागली से विधायक बने। इसके लिए कार्यकर्ताओं ने कैलाश जोशी का सम्मान कार्यक्रम रखा।
यहां तक की अटल बिहारी वाजपेयी और राजमाता सिंधिया भी इस कार्यक्रम में आए। राजनीति में संत कहलाने वाले जोशी का मंच पर सम्मान हुआ और कार्यकर्ताओं ने चंदे से पैसा जुटाकर खरीदी गई एम्बेसडर कार की चाबी भी यहीं जोशी को सौंपी।
दिग्विजय से ली सीधी टक्कर…
ऐसा ही एक मामला 1998 का है, जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और दिग्विजय सिंह इस सरकार के मुखिया यानि मुख्यमंत्री थे। इस समय हुए चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस और दिग्विजय सिंह को उनके गढ़ में घेरने के लिए कैलाश जोशी को मैदान में उतारा। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह कांग्रेस प्रत्याशी थे।
ऐसा ही एक मामला 1998 का है, जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और दिग्विजय सिंह इस सरकार के मुखिया यानि मुख्यमंत्री थे। इस समय हुए चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस और दिग्विजय सिंह को उनके गढ़ में घेरने के लिए कैलाश जोशी को मैदान में उतारा। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह कांग्रेस प्रत्याशी थे।
इस चुनाव में भले ही कैलाश जोशी चुनाव 56 हज़ार से कुछ अधिक मतों से हार गए, लेकिन दिग्विजय सिंह को अपने भाई को जीत दिलाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। इस समय दिग्विजय सिंह ने साख बचाने के लिए इस संसदीय क्षेत्र में पहली बार सबसे ज्यादा चुनावी सभाएं की और गांवों में जनसंपर्क भी किया।
इस चुनाव से भाजपा में कैलाश जोशी की धाक ऐसी जमी कि भले ही वे लोकसभा चुनाव हार गए, लेकिन भाजपा ने उन्हें राज्यसभा में भेजा। वहीं इसके बाद 2002 में जब उमा भारती ने भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनने से इनकार कर दिया, तब अंदरूनी कलह से भाजपा को बचाने के लिए कैलाश जोशी को मध्यप्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया।
इसके बाद 2004 में कैलाश जोशी ने भोपाल से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की और ये जीत 2014 तक सांसद के रूप में बरकरार भी रही। जोशी ने ही 2014 आडवाणी को भोपाल से चुनाव लड़ने आमंत्रित किया था। लेकिन जैसे ही भोपाल में आडवाणी के पोस्टर लगे भाजपा की सियासत गरमा गई।
मामला इतना बड़ा की आडवाणी को तो भाजपा ने गांधीनगर(गुजरात) से टिकट दिया, लेकिन जोशी को भोपाल से मैदान में नहीं उतारा। जबकि जोशी के कद को देखते हुए भाजपा ने उनके पुत्र दीपक जोशी के मित्र आलोक संजर को भाजपा उम्मीदवार बना दिया।
इसके बाद से ही यानि 2014 के बाद से जोशी सक्रिय राजनीति से दूर होते चले गए। भाजपा के कार्यक्रमों में वे दिखते जरूर थे, लेकिन चुप ही रहते। भाजपा के 75 फार्मूले के तहत उन्हें न तो राज्य न तो केंद्र में कोई बड़ी ज़िम्मेदारी मिली।