कांग्रेस का मैनेजमेंट इस टूटन को रोकने में नाकाम साबित हो रहा है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे अनुभवी और राजनितिक प्रबंधन में माहिर नेताओं का गणित भी फेल हो गया है। कांग्रेस नेताओं को विधायकों के पार्टी से जाने की भनक तक नहीं लग रही है। 15 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस 19 महीने में बिखर गई गई है। पांच महीने में उसके 25 विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं।
कमलनाथ छिंदवाड़ा से 8 बार लोकसभा का चुनाव जीते। केन्द्र सरकार में कई अहम विभागों के मंत्री रहे। कमलनाथ को गांधी परिवार का करीबी माना जाता है। 26 अप्रैल 2018 को कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने कमलनाथ के राजनीतिक अनुभव और मैंनेजमेंट को देखते हुए मध्यप्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया। जबकि पार्टी के युवा चेहेरे ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया गया।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 में ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी के सबसे लोकप्रिय और बड़ा चेहरा थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जहां मैदानी स्तर पर मोर्चा संभाला वहीं, पूरे चुनाव के दौरान कमलनाथ का प्रबंधन नजर आया। कमलनाथ ने हर सीट पर उम्मीदवारों का सर्वे कराया और 15 सालों बाद राज्य में पार्टी को सत्ता दिलाई। हालांकि सत्ता में वापसी का कारण एक खेमा ज्योतिरादित्य सिंधिया को बता रहा था था तो दूसरा खेमा कमलनाथ को। दिग्विजय सिंह विधानसभा चुनाव के दौरान पर्दे के पीछे से रणनीति तय करते रहे और तीनों नेताओं के प्रयास के पार्टी को सत्ता मिली।
विधानसभा चुनाव 2018 में जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस का प्रबंधन लोकसभा चुनाव 2019 में ध्वस्त हो गया। मध्यप्रदेश में कांग्रेस को केवल एक सीट मिली। छिंदवाड़ा से नकुलनाथ विजयी रहे। ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह भी अपना चुनाव हार गए। सिंधिया की हार के बाद से कांग्रेस खेमों में बांटी नजर आई।
कांग्रेस की अंदरूनी कलह तब सामेन आई जब कमलनाथ सरकार के वन मंत्री उमंग सिंघार ने दिग्विजय सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इस पूरी लड़ाई मे कमलनाथ और आलाकमान दिग्विजय के साथ खड़ा दिखा और पार्टी में जारी कलह खुल के प्रदेश के सामने आ गई। उमंग ने तो मीडिया के सामने खुलकर दिग्विजय सिंह पर माफियाओं के साथ मिले होने का आरोप भी लगाया। उमंग सिंघार के इन आरोपों पर मुख्यमंत्री कमलनाथ सहित पार्टी आलाकमान खामोश रहे। मंत्रियों को यह हिदायत ज़रूर दे दी गई है कि सार्वजनिक बयानबाज़ी और आरोप-प्रत्यारोप ना करें। लेकिन समय-समय पर उनके नेता अपनी ही पार्टी की कार्यशैली पर सवाल उठाते रहे।
दिग्विजय सिंह सभाओं में कमलनाथ और अपनी दोस्ती की तारीफ करते रहे। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत की किसी को भनक तक नहीं लगी। सिंधिया समर्थक 18 विधायक कब भोपाल छोड़कर बेंगलूरू चले गए किसी को भी भनक नहीं लगी। कहा गया कि कमलनाथ-दिग्विजय की जोड़ी में ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा हो रही है। खुद कमलनाथ इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि उन्हें और दिग्विजय सिंह को भरोसा नहीं था कि कांग्रेस के इतने विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ चले जाएंगे।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के बिखरने का मुख्य कारण खेमेबाजी है। कांग्रेस कई खेमों में बांटी हुई नजर आ रही है। वहीं, जानकारों का कहना है कि मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की ताकत को कांग्रेस भाप नहीं पाई। दिग्विजय सिंह पर राज्यसभा जाने के लिए सियासी ड्रामा रचने का आरोप लगाया गया।