यह सरकारी बंगला तीस साल से ज्यादा समय से कमलनाथ का दिल्ली का पता रहा है, लेकिन दिसंबर २०१८ में वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए थे। इसलिए इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़े। इसलिए सांसद न रहने के कारण उनको यह बंगला खाली करना पड़ा था।
उनके पुत्र नकुलनाथ पहली बार के सांसद हैं, इसलिए उन्हें यह बंगला आवंटित नहीं हो सकता था। इसके चलते कमलनाथ को यह बंगला खाली करना पड़ा था, लेकिन इस बंगले से उनकी यादें १९९८ से जुड़ी हुई हैं। तब, पहली बार उनको बतौर सांसद यह बंगला आवंटित हुआ था। इसके बाद उनके ओहदे बदलते रहे, लेकिन उनका बंगला यही रहा। इसलिए कमलनाथ इस बंगले का वापस चाहते थे। इसके लिए सरकार के स्तर पर रास्ता खोजा गया और अब वापस आवंटन पा लिया गया है।
यूं निकाला आवंटन का फार्मूला-
दरअसल, मध्यप्रदेश सरकार को दिल्ली में छह बंगलों का आवंटन प्राप्त है। इसमें तीन बंगले टाइप-६, दो बंगले टाइप-५ और एक बंगला टाइप-४ का है। लेकिन, कमलनाथ का एक तुगलक रोड़ स्थित बंगला टाइप-८ केटेगरी का है। इसलिए मध्यप्रदेश सरकार ने अपने कोट से दो बंगले सरेंडर कर दिए।
दरअसल, मध्यप्रदेश सरकार को दिल्ली में छह बंगलों का आवंटन प्राप्त है। इसमें तीन बंगले टाइप-६, दो बंगले टाइप-५ और एक बंगला टाइप-४ का है। लेकिन, कमलनाथ का एक तुगलक रोड़ स्थित बंगला टाइप-८ केटेगरी का है। इसलिए मध्यप्रदेश सरकार ने अपने कोट से दो बंगले सरेंडर कर दिए।
इसमें एक बंगला टाइप-६ और एक बंगला टाइप-५ का सरेंडर किया गया। इस तरह दो बंगले सरेंडर करके बड़ा टाइप-८ का बंगला ले लिया गया। इसके बाद अब प्रदेश के कोटे में ६ की बजाए ५ सरकारी बंगले दिल्ली में रह गए हैं।