विधानसभा चुनाव के समय से चल रहा कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ( Jyotiraditya Scindia ) में पावर की जंग फिर शुरू हो गई। वैसे तो पार्टी हाईकमान युवा हाथों में नेतृत्व सौंपने की बात करती है लेकिन जब मौका आता है तो 70 पार कमलनाथ जैसे नेताओं को कमान सौंप दी जाती है। सिंधिया पहले मुख्यमंत्री पद से साइड हटाए गए फिर गुना-शिवपुरी से लोकसभा का चुनाव भी गंवा बैठे। दिल्ली में उनकी राजनीतिक भूमिका अभी सिर्फ कांग्रेस महासचिव और पश्चिमी यूपी के प्रभारी की है लेकिन उनको भी पता है कि इससे काम चलने वाला नहीं। लिहाजा अब वे मध्यप्रदेश में अपनी दमदार जगह कायम रखना चाहते हैं। सिंधिया समर्थक तो अब अपने नेता की प्रदेश वापसी तक चाहने लगे हैं और उनकी ताजपोशी प्रदेश अध्यक्ष पद पर करने की मांग कर रहे हैं।
कांग्रेस बनाम कांग्रेस
चुनाव में मुलाबला भले ही बीजेपी बनाम कांग्रेस में होता हो लेकिन मध्यप्रदेश में इन दिनों कांग्रेस बनाम कांग्रेस की लड़ाई चल रही है। कमलनाथ सरकार में आंतरिक प्रतिस्पर्धा का ग्रहण लग चुका है। पार्टी सिंधिया बनाम मुख्यमंत्री कमलनाथ के बहस में उलझी हुई है और मंत्री-विधायक को सरकार से ज्यादा अपने-अपने आकाओं की चिंता है। कमलनाथ और सिंधिया अपने-अपने राजनीतिक जामा पहनाने में लगे हैं। यहां कमलनाथ के साथ दिग्विजय जैसा बड़ा मददगार है तो सिंधिया, राहुल गांधी के बेहद करीबी लोगों में शामिल हैं।
क्या है मामला
मध्यप्रदेश कैबिनेट की बैठक में सिंधिया समर्थक मंत्री और कमलनाथ समर्थक मंत्रियों के बीच बहस हो गई। इस बहस में मुख्यमंत्री कमलनाथ को हस्ताक्षेप करना पड़ा था। जिसके बाद से मध्यप्रदेश में सिंधिया और कमलनाथ गुट आमने-सामने हो गया है।