अक्सर अपने कारनामों को लेकर सवालों में घिरने वाली मध्यप्रदेश की खाकी एक बार फिर सवालों में है। इस बार पुलिस के सवालों में घिरने की वजह है एडवाइजरी जो मध्यप्रदेश पुलिस के मुखिया वीके सिंह ने जारी की है। वीके सिंह की ओर से प्रदेश के सभी जिलों के एसपी को ये निर्देश दिए गए हैं कि गिरफ्तार किया जाना वाला व्यक्ति अगर अनुसूचित जाति और जनजाति का हो तो उसके साथ अभद्र व्यवहार और मारपीट न की जाए…यानि कि अगर कोई अनुसूचित जाति और जनजाति का है तो पुलिस उस पर कार्रवाई करने से पहले कतराएगी…और अगर दूसरी जाति का हुआ तो क्या हाल होगा ये सभी को पता है…जैसे ही ये एडवाइजरी जारी हुई मानो प्रदेश में बवाल मच गया…विभिन्न सामाजिक संगठन, सपाक्स, करणी सेना और बीजेपी ने भी इस पुलिस के इस निर्देश का विरोध किया है।
हर तरफ से विरोध हुआ तो सरकार भी सकते में नजर आई। गृहमंत्री बाला बच्चन से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें इस एडवाइजरी के बारे में कोई जानकारी नहीं है…और वो इस संबंध में डीजीपी से चर्चा करेंगे क्योंकि किसी भी व्यक्ति पर कानूनी कार्रवाई पूरी प्रक्रिया के तहत ही होगी….जाति पूछकर कार्रवाई नहीं की जा सकती है।
आखिरकार डीजीपी ने ऐसी एडवाइजरी क्यों जारी कि इसके पीछे की वजह भी आपको बताते हैं। दरअसल, ये सारा मामला एक मुसीबत से बचने के लिए दूसरी आफत मोल लेने की तरफ का है। इस एडवाइजरी को एक पुराने मामले की वजह से जारी करना पड़ा है। ये मामला इसी साल अगस्त के महीने में झाबुआ अलीराजपुर में सामने आया था। यहां खाकी पर पांच युवकों को पुलिस कस्टडी में बेरहमी से पीटने और पेशाब पिलाने के आरोप लगे थे। मामले में काफी हंगामा भी हुआ था और बात राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति बोर्ड तक पहुंच गई। वहां से पुलिस को फटकार लगी और ये निर्देश भी मिला कि 50-50 हजार रुपए का मुआवजा पीड़ितों को पुलिस दे और भविष्य में इस बात का ध्यान भी रखें कि पीड़ितों के साथ भविष्य में इस बात की कोई घटना न हो।