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किस्सागोई: परेशान मंत्री और यूपी नंबर की गाड़ियां

locationभोपालPublished: Oct 16, 2021 05:49:32 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

किस्सागोई: एक नए अंदाज में कुछ पर्दे के पीछे की कहानियां

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परेशान हैं मंत्री जी
बुंदेलखंड से एक मंत्री जी आते हैं, सिंधिया के खास हैं। लेकिन बेचारे आजकल बड़े परेशान हैं। परेशानी की वजह है चुनाव। मध्यप्रदेश में उपचुनाव हो रहे हैं। एक सीट उनके इलाके की भी थी, लेकिन उन्हें प्रभार दिया गया आदिवासी इलाके की सीट का। सबसे मुश्किल यह है कि यहां पर भाजपा ने कांग्रेस से आयातित को टिकट दिया है। अब कार्यकर्ता नाराज हैं और मंत्री जी की मुश्किल ये है कि वो किस ओर जाएं। क्योंकि दिल तो अपने इलाके की सीट पर है, लेकिन काम बिना प्रभाव वाले इलाके में करना पड़ रहा है। अब कहने को तो सीट जिताने का जिम्मा मिला है, बाकी तो मंत्री जी का दिल ही जानता है।
दवे और लुनावत बनाने की कोशिश
प्रदेश के एक मंत्री जी लगातार चुनाव प्रबंधन में अपना कौशल दिखा रहे हैं। उन्हें मुख्यमंत्री का करीबी भी माना जाता है। लेकिन इन दिनों सोशल मीडिया पर मंत्री के समर्थकों ने उन्हें भविष्य का अनिल माधव दवे एवं विजेश लुनावत बताना शुरू कर दिया है। दुर्भाग्य से यह दोनों नेता असमय ही इस दुनिया से विदा हो गए, लेकिन दोनों ही चुनाव प्रबंधन में पारंगत रहे। अब मंत्री के दूसरे पाले में खड़े लोग भी धीमे से फुसफुसा रहे हैं कि दवे और लुनावत बनने के चक्कर में कहीं मंत्री जी नुकसान न उठा जाएं। क्योंकि भाजपा के भीतर चुनाव प्रबंधन संभालने के लिए कई दावेदार अपने सितारे कम होते हुए नहीं देखना चाहते हैं।
अफसरों का रिटायर क्लब
जो काम नौकरी में रहते हुए नहीं हुआ, उसे अब एक वरिष्ठ आईएएस अफसर ने पूरा कर दिया। मध्यप्रदेश के ज्यादातर मुख्य सचिव और अपर मुख्य सचिवों के रिश्ते मधुर नहीं रहे हैं। कम ही लोग हैं जो आपस में कभी साथ बैठते थे। लेकिन इन महाशय ने सभी को साथ ला दिया है। वजह बहुत ही सीधी सी है, ये साब सरकार में हैं और सत्ता में भी। बाकी सब रिटायर घर पर बैठे हैं और इन महाशय के सताए हुए हैं। दुश्मन का दुश्मन दोस्त ही होता है सो बाकी सब रिटायर साथ हो लिए। अब इंतजार इस बात का है कि इनका जवाबी हमला कब तक होता है।
यूपी नंबर की गाड़ियों की भीड़
उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे एक विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव हैं। भाजपा ने आयाति त प्रत्याशी पर दांव खेला है। जबकि कांग्रेस ने परिवारवाद को ही आगे बढ़ाया है। अब इस सीट पर आयातित प्रत्याशी के साथ सबसे बड़ी मुश्किल यह खड़ी हो गई है कि स्थानीय नेताओं ने एक तय दूरी बना ली है। ऐसे में उनकी मदद के लिए उत्तर प्रदेश से गाड़ियां आ रही हैं। वैसे कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं कि इन नेताजी को स्थानीय लोगों पर भरोसा भी जरा कम है, वह यूपी नंबर की गाड़ियों पर ही भरोसा कर पा रहे हैं।

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