दीक्षा होतचंदानी की उम्र 23 वर्ष है इन्हें 2 वर्ष पूर्व ब्लड कैंसर होने का पता चला। इलाज के दौरान ठीक भी हो गया। 6 माह बाद बुखार आने पर इलाज के दौरान पता चला कि दीक्षा की बीमारी फिर से उभर आई है। डॉक्टरों द्वारा कीमो थेरेपी कारगर नहीं होने पर सीएनसी वेलोरे चेन्नई में जांच कराई गई जहां पता चला की बोर्नमेरो ट्रांसप्लांट के बाद इसे ठीक किया जा सकता है।
मन में है शिक्षिका बनने की तमन्ना
दीक्षा संत हिरदाराम गल्र्स कॉलेज में फाईनल इयर की छात्रा है। उसके मन में बचपन से शिक्षिका बनने की चाह बनी हुई है। वह हमेशा कहती है कि उसे बड़े होकर शिक्षिका बनना है, ताकि वह बच्चों को शिक्षित कर देश के लिए सेवा करने के लिए प्रेरित कर सके।
नहीं हारी हिम्मत
दीक्षा के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नही है। दीक्षा के पिता का 3 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो गया था। इनके दोनों भाई प्राइवेट नौकरी करते हंै। इसके बाद भी इन्होंने बहन को सीएनसी वेलोर चेन्नई में एडमिट कराया। वहां पर डॉक्टरों ने कीमो थेरेपी का कोटेशन दिया। कीमो थेरेपी के पश्चात बोर्न मेरो ट्रांसप्लांट का आपरेशन हो पाएगा। यह दोनों भाई अपनी बहन के लिए बोर्न मेरो देने को तैयार हैं, जिसके लिए संस्थाओं ने भी मदद की है। हालांकि दीक्षा की जनवरी में कीमो थेरेपी सफल हो गई है, अब फरवरी में दूसरे पड़ाव में उनका ऑपरेशन किया जाएगा।
नियामित योग एवं आयुर्वेदिक उपचार से मिला नया जीवन
मेरी आहार नली में कैंसर था, डॉक्टरों की सलाह पर कीमो थेरेपी भी कराई, लेकिन बाद में डॉक्टर ने बीमारी लाईलाज बताकर उपचार करने से मना कर दिया। फिर भी मैने हिम्मत नहीं हारी। यह कहना है मंडीदीप निवासी कैंसर पीडि़त 55 वर्षीय जगदीश वर्मा का। उन्होंने बताया कि डॉक्टरों द्वारा उपचार से मना करने के बाद मैने देशी उपचार कराने का मना बनाया। वर्ष 2017 में मेरी मुलाकात पंतजली आर्युवेद केन्द्र के संचालक एवं योग प्रशिक्षक रमेश शर्मा से हुई। शर्मा को मैने बीमारी के साथ ही डॉक्टरों द्वारा इसका इलाज नहीं किए जाने की बात बताई।