यहां से भाजपा उम्मीदवार केपी यादव ने कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया पर निर्णायक बढ़त बना ली है। केपी यादव 1.20 लाख से ज्यादा वोटों से आगे हैं। बताया जाता है कि केपी यादव सिंधिया के सांसद प्रतिनिधि थे, लेकिन इस बार चुनाव में भाजपा ने बड़ा दांव खेलते हुए गुना के सियासी मैदान में गुरु के सामने चेले को उतार दिया। अब तक मिल रहे रूझानों से साफ हो गया है कि भाजपा का दांव काम आया और केपी यादव ने अपने गुरु पर निर्णायक बढ़त बना ली।
सिंधिया राजघराने का 1957 से कब्जा गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट पर सिंधिया राजघराने का कब्जा रहा है। लेकिन इस बार लग रहा है कि यहां से अपने चेले से सिंधिया हार जाएंगे। दरअसल, 1957 में यहां हुए पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर सिंधिया राजघराने की महारानी विजिया राजे ने पहला चुनाव लड़ा। उसके बाद 1971 में विजयाराजे के बेटे माधवराव सिंधिया ने भी पहला चुनाव यहीं से जंनसंघ के टिकट पर लड़ा था और जीता भी था। माधवराव सिंधिया के निधन होने के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजनीतिक करियर की शुरुआत 2002 में हुए उपचुनाव में यहीं से की। पिछले 4 चुनावों से इस सीट पर कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही जीत मिली है। लेकिन इस बार लग रहा है सिंधिया राजघराने के हाथ से यह सीट निकल जाएगी।
…तो चेले से हार जाएंगे गुरु! कभी सिंधिया के सांसद प्रतिनिधि रहे केपी यादव 2019 लोकसभा चुनाव में जैसे ही भाजपा की ओर उम्मीदवार बने, वो चर्चा के केन्द्र में आ गए, क्योंकि सिंधिया की पत्नी प्रियदर्शनी राजे सिंधिया ने ट्वीट कर कहा था कि जो कल तक महाराज के साथ सेल्फी लेने के सिंधिया का इंतजार करता था, वह अब गुना में उनको चुनौती देगा? इस बयान के बाद से ही इस सीट पर गुरु-चेले की लड़ाई परवान पर चढ़ी। रूझानों से अब तो ऐसा लग रहा है कि इस लड़ाई में चेला गुरु पर भारी पड़ रहा है और 1957 के बाद पहली बार यह सीट सिंधिया राजघराने के हाथ से निकल जाएगी।