scriptबहू को टिकट दिलाने के लिए ‘अड़’ गए थे बाबूलाल गौर, अब कृष्णा गौर ही संभालेगी राजनीतिक विरासत? | Krishna Gaur Will become handle Babulal Gaur's political legacy | Patrika News

बहू को टिकट दिलाने के लिए ‘अड़’ गए थे बाबूलाल गौर, अब कृष्णा गौर ही संभालेगी राजनीतिक विरासत?

locationभोपालPublished: Aug 21, 2019 08:51:36 pm

Submitted by:

Muneshwar Kumar

तो क्या बाबूलाल की विरासत को उनकी बहू कृष्णा गौर आगे ले जाएंगी.

Krishna Gaur
भोपाल. मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम बाबूलाल गौर का निधन हो गया है। ऐसे में राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी है कि गौर की राजनीतिक विरासत को कौन संभालेगा। बेटे के निधन के बाद बहू कृष्णा गौर ( Krishna Gaur ) राजनीतिक में सक्रिय हैं। लगातार दस बार चुनाव जीतना आसान नहीं होता है। बाबूलाल गौर की जगह उनकी बहू कृष्णा भी जब इस सीट से चुनाव लड़ीं तो वह भी पहली बार में चुनाव जीत गई।
बाबूलाल गौर के परिवार से राजनीति में अभी सिर्फ उनकी बहू कृष्णा गौर ही सक्रिय हैं। कृष्णा भोपाल के गोविंदपुरा लोकसभा सीट से बीजेपी की विधायक हैं। बाबूलाल गौर को टिकट नहीं मिलने पर बीजेपी से कृष्णा गौर चुनाव लड़ी। हालांकि चुनाव से पहले कृष्णा के गौर के टिकट को लेकर भी पार्टी में खूब बखेड़ा हुआ था। लेकिन गौर बहू को टिकट दिलाने के लिए अड़े रहे।
Krishna Gaur
 

टिकट के लिए अड़ गए थे बाबूलाल
75 वाले फॉर्मूले के बाद बाबूलाल गौर को 2018 के विधानसभा चुनाव में टिकट मिलना मुश्किल था। ऐसे में बाबूलाल गौर इस गोविंदपुरा सीट अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे। बाबूलाल ने पार्टी से कह दिया कि अगर मुझे नहीं तो बहू कृष्णा गौर को यहां से टिकट मिले। बाबूलाल के किनारे होने के बाद इस सीट पर कई दावेदार थे। पार्टी जब कृष्णा गौर की टिकट को लेकर टालमटोल कर रही थी तो बाबूलाल ने निर्दलीय ही चुनाव लड़ाने का फैसला कर लिया था।
Krishna Gaur
 

झुक गई पार्टी
बाबूलाल गौर के तेवर के आगे आखिरी में पार्टी झुक गई। नवंबर 2018 के पहले सप्ताह में पार्टी ने कृष्णा गौर की उम्मीदवारी घोषित कर दी। उसके बाद टिकट के दूसरे दावेदारों ने भोपाल स्थित बीजेपी दफ्तर में जाकर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। लेकिन कृष्णा गौर ने बखूबी साधते हुए इस चुनाव में जीत हासिल की। इसके साथ ही कृष्णा गौर की म्यूनिसिपल की राजनीति से प्रदेश की राजनीति में एंट्री हो गई।
Krishna Gaur
 

ऐसे शुरू हुई राजनीतिक सफर
कृष्णा गौर का जन्म इंदौर में हुआ है। वह पूरी तरह से भारतीय परिवार में पली-बढ़ी हैं। बाबूलाल गौर के बेटे पुरुषोत्तम गौर से उनकी शादी हुई थी। लेकिन असमायिक निधन से परिवार को गहरा सदमा लगा। उस वक्त बाबूलाल गौर मध्यप्रदेश के सीएम थे। गौर परिवार के लिए मुश्किल घड़ी थी, ऐसे वक्त में कृष्णा ने परिवार को संभाला। उसके बाद वह ससुर के साथ कदम से कदम मिलकर चलती रहीं। पंचायत और नगरीय चुनाव में उन्होंने अहम भूमिका निभाईं। बाबूलाल ने इसके बाद उन्हें राज्य पर्यटन निगम का अध्यक्ष बना राज्य मंत्री का दर्जा दे दिया। लेकिन उनके इस फैसले पर विवाद काफी हुआ तो कृष्णा गौर को पद छोड़ना पड़ा।
babulal.jpg
 

इसके बाद कृष्णा गौर बीजेपी महिला मोर्चा की उपाध्यक्ष बनीं। इसके बाद कृष्णा गौर भोपल की मेयर बनीं। मेयर की कुर्सी संभालने के बाद कृष्णा गौर ने अपनी एक अलग पहचान बनायी। साथ ही शहर के विकास के लिए कई काम की। इस दौरान उनके ससुर बाबूलाल गौर नगरीय विकास मंत्री थे।
677_1.jpg
 

ससुर का किया बचाव
बाबूलाल गौर इस दौरान कई बार पार्टी लाइन से हटकर बयान भी देते रहें। लेकिन कृष्णा गौर ने अच्छे से इन विवादों को हैंडल किया। साथ ही ससुर बाबूलाल गौर को डिफेंड किया। इस दौरान कृष्णा सुलझी हुई नेत्री के रूप में अपने आप को पेश की।
k16.jpg
 

लेकिन अब सरंक्षक नहीं
ससुर बाबूलाल गौर एक तरीके से राजनीति में कृष्णा गौर संरक्षक थे। उनके छत्रछात्रा में ही कृष्णा गौर खुद को राजनीति में निखारा। लेकिन अब बाबूलाल गौर नहीं रहे, ऐसे में कृष्णा गौर अब खुद के बुते ही अपनी पहचान बनानी होगी। तभी राजनीति में बाबूलाल गौर की विरासत को संभाल सकती है। और खुद की राजनीतिक करियर को भी एक उड़ान दे सकती हैं।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो