शनिवार को गृह निर्माण सोसायटियों के संबंध में स्पेशल जनसुनवाई की गई। पहली बार हुई इस तरह की सुनवाई में लोग 30 साल पुराने दस्तावेज लेकर शिकायत करने पहुंचे। उस समय कराईं गईं रजिस्ट्रियों के पन्ने पलटने में भी डर लग रहा था, कहीं फट न जाएं। लेकिन न्याय की एक आस में भी फिर से फरियाद करने पहुंचे, शायद इस बार निजाम उनकी फरियाद सुन ले। 172 शिकायतें पहुंची हैं, जो 51 गृह निर्माण सोसायटी से संबंधित थीं।
प्लाट आवंटित नहीं होने, प्लाट की रजिस्ट्री नहीं होने, रजिस्ट्री केबाद कब्जा नहीं मिलने से संबंधित थी । ज्यादरतर शिकायतें रोहित, गौरी, सर्वोदय, सर्वधर्म, लावण्य गुरूकुल एवं पेरिस गृह निर्माण संस्थाओं से संबंधित हैं। इससे पहले की की 665 शिकायतों में कामधेनु, सर्वोदय, रोहित, स्वजन, सौरभ, हजरत निजामउद्धीन, सर्वधर्म एवं कान्हा गृह निर्माण सहकारी संस्थाओं की शिकायतें भी अधिक हैं ।
40 की उम्र में बुक कराया प्लॉट, 72 साल तक संघर्ष जारी
नगर निगम से रिटायर्ड जोनल अधिकारी प्रमोद श्रीवास्तव और उनकी पत्नी कस्तूरी श्रीवास्तव ने शिकायत करते हुए बताया कि समरधा की पॉश लोकेशन में न्यू अभिषेक गृह निर्माण समिति ने प्लॉटिंग की थी। प्रेमलता श्रीवास्तव के नाम से 1989 में 5800 रुपए में प्लॉट बुक कराया। इसके बाद मंथली किस्त देते रहे, 1994 में रजिस्ट्री भी हो गई, लेकिन प्लॉट नहीं मिले। रिटायर्ड प्रिंसिपल कस्तूरी बताती हैं कि 31 साल पहले बुक कराए प्लॉट पर कब्जा पाने के लिए अब तक कई शिकायतें की, एक बार फिर से आस जागी है।
पिता के फंड से खरीदा था प्लॉट
राज्य योजना आयोग में है निज सहायक दर्पण सिंह रावत ने महाकाली सोसायटी की शिकायत करते हुए बताया कि जेल विभाग में पदस्थ पिता के रिटायर्ड होने के बाद 1988 में प्लॉट बुक कराया था। उस समय 3275 रुपए दिए थे, बाद में किस्तों में पूरा रुपया दे दिया। त्रिलंगा में लैंड कॉस्ट और डवलपमेंट कॉस्ट के नाम पर सभी प्रकार के शुल्क ले लिए। लेकिन प्लॉट आज तक नहीं मिला। उन्होंने बताया कि महाकाली में 815 सदस्य हैं, जिसमें से काफी कम लोगों को ही प्लॉट मिले हैं। बाकी जमीनें बिल्डरों को बेच दीं गईं।
33 साल से लड़ रहा हूं, हिम्मत जुटाकर उम्मीद से आया
मंदाकिनी गृह निर्माण सोसायटी के संबंध में अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए 65 साल के भोला सिंह ने बताया कि 1988 में प्लॉट बुक कराया। बस यही गुनाह हो गया, पिछले 33 साल से कब्जा पाने भटक रहा हूं। कई बार शिकायतों के बाद उम्मीदें जागीं, लेकिन टूट गईं। भावुक होते हुए, साहब इस बार कुछ करा दीजिए, अगर अब कुछ नहीं हुआ तो…आगे हाथ जोड़कर चले गए। अधिकारियों ने भी एक दूसरे की तरफ से देखा और लोगों के दर्द को जाना।
उस समय एक लाख लिए, किसी और को दे दिया प्लॉट
1989 के एक लाख 27 हजार रुपए, आज के पचास लाच के बराबर बैठेंगे, लेकिन मन्नीपुरम गृह निर्माण समिति के तत्कालीन अध्यक्ष ने उन्हें कई दिन घुमाया, ज्यादा जोर दिया तो एक टोकन नंबर बांट कर 162 प्लॉट उनके नाम कर दिया। जिसकी रजिस्ट्री उनके नाम पर होनी थी, लेकिन बाद में समिति अध्यक्ष ने ये किसी ओर के नाम पर करा दी। जब से वो प्लाट के लिए भटक रहे हैं।
रजिस्ट्री के बाद नामांतरण कराया, कब्जा नहीं मिला
वैभव श्रीवास्तव ने बताया कि उन्होंने आकांक्षा गृह निर्माण समिति के अंशुल विहार कॉलोनी में 1200 वर्ग फिट का प्लॉट खरीदा था। रजिस्ट्री के बाद नामांतरण भी करा लिया, कब्जा दिलाने की बारी आई तो आए दिन कोई न कोई बहाना बनाकर आवंटन टालते गए। कुछ दिन बाद प्लॉट देखने गए तो वहां ड्यूप्लेक्टस बनते देखे गए। समिति अध्यक्ष आरके लालवानी से बात की तो वो प्लाट दिलाने का भरोसा दिलाते रहे, लेकिन आज तक नहीं मिला।
सहेज रखी हैं पुरानी रसीदें, नक्शे और रसीदें
धोखाधड़ी का शिकार हुए लोगों ने आज भी पुरानी रसीदें, नक्शे और रजिस्ट्री सहेज कर रखी हैं। एक-एक पीडि़त 30 से ज्यादा शिकायतें की कॉपी रखे हुए है। लेकिन प्लॉट आज तक नहीं मिले। जनसुनवाई में बैठक तीनों एडीएम शिकायत और उनके द्वारा रखे गए पुराने दस्तावेज देखकर हैरान थे।