लताजी और उनके परिवार के महाराष्ट्र चले जाने के बाद इस घर को एक मुस्लिम परिवार ने खरीदा। यह परिवार कुछ वर्षों तक रहा और फिर बलवंत सिंह को बेच दिया। बाद में इसे नितिन मेहता Nitin Mehta ने खरीदा। मेहता ने घर का कायाकल्प करवाया और बाहरी हिस्से में कपड़े की दुकान खोली। मेहता परिवार लताजी की पूजा करता रहा है। दुकान में लताजी Lataji का म्युरल भी बनाया गया है।
वैसे तो लताजी इंदौर कम ही आती जाती थीं, मगर उनके जहन में इंदौर हमेशा जिंदा था। वे इंदौर के सराफा sarafa बाजार हो हमेशा याद करती रहती थीं। मगर सोने—चांदी और गहने—आभूषण के लिए नहीं, यहां लगने वाली चाट—चौपाटी के लिए। इंदौर के गुलाब जामुन, रबड़ी, दही बड़े उन्हें बेहद पसंद थे। इंदौर के लोगों से मिलने पर वे पूछती थीं— सराफा तसाच आहे का? यानी क्या सराफा अभी वैसा ही है।
वैसे तो लताजी इंदौर कम ही आती जाती थीं, मगर उनके जहन में इंदौर हमेशा जिंदा था। वे इंदौर के सराफा sarafa बाजार हो हमेशा याद करती रहती थीं। मगर सोने—चांदी और गहने—आभूषण के लिए नहीं, यहां लगने वाली चाट—चौपाटी के लिए। इंदौर के गुलाब जामुन, रबड़ी, दही बड़े उन्हें बेहद पसंद थे। इंदौर के लोगों से मिलने पर वे पूछती थीं— सराफा तसाच आहे का? यानी क्या सराफा अभी वैसा ही है।