हाल ही में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की अध्यक्षता में शिमला में हुए पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में यह मामला उठा। सभी विधानसभा अध्यक्ष इस प्रस्ताव पर सहमत रहे। हिमाचल राज्य में तो इसे तत्काल लागू कर दिया। इसके बाद अब मध्यप्रदेश में भी सक्रियता बढी है। मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष गिरीश गौतम कहते हैं कि इस विषय पर चर्चा हुई है। निर्णय सरकार को लेना है।
वर्तमान व्यवस्था के तहत राज्य सरकार विधानमण्डल के लिए बजट उपलब्ध कराती है। अन्य विभागों की तरह यहां भी तय रहता है कि किस मद में कहां कितनी राशि खर्च होगी। यदि विधानसभा के पास बजट शेष है तो वह चाहते हुए अन्य कार्य में राशि को खर्च नहीं की जा सकती। इसके लिए सरकार से अनुमति जरूरी है, नियम भी आड़े आते हैं। ऐसा नहीं है कि यह व्यवस्था सिर्फ विधानसभा के लिए है बल्कि अन्य विभागों के लिए भी ऐसे ही नियम हैं। इसलिए विधानसभा चाहती है कि नियमों में बदलाव हो।
संसद में वित्तीय स्वायत्ता की है व्यवस्था
संसद में वित्तीय स्वायत्तता की व्यवस्था है। वहां खर्च के लिए के मामले में सरकार का दखल नहीं है। राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी वाली कमेटी ने भी ऐसा ही प्रस्ताव दिया है।
संसद में वित्तीय स्वायत्तता की व्यवस्था है। वहां खर्च के लिए के मामले में सरकार का दखल नहीं है। राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी वाली कमेटी ने भी ऐसा ही प्रस्ताव दिया है।
एमपी विधानमण्डल का बजट, कहां कितना खर्च
अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का वेतन भत्ता – 65.64 लाख रुपए
विधायक वेतन – 4475.89 लाख रुपए
विधानसभा सचिवालय – 4111.95 लाख रुपए
अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष की निजी स्थापना – 498.01 लाख रुपए
सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी कार्य – 400.00 लाख रुपए
विधायकों के लैपटॉप के लिए – 75.00 लाख रुपए
अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का वेतन भत्ता – 65.64 लाख रुपए
विधायक वेतन – 4475.89 लाख रुपए
विधानसभा सचिवालय – 4111.95 लाख रुपए
अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष की निजी स्थापना – 498.01 लाख रुपए
सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी कार्य – 400.00 लाख रुपए
विधायकों के लैपटॉप के लिए – 75.00 लाख रुपए
छह माह के बजाय तीन माह में हो सदन की बैठकें
विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम कहना है कि मौजूदा व्यवस्था के तहत सदन की बैठकें छह माह के अंतराल में होना जरूरी है, यह संवैधानिक व्यवस्था भी है। पीठासीन अधिकारियों का सुझाव था कि सदन की बैठक तीन माह में होना चाहिए। गौतम के मुताबिक बिना बहस के सदन में विधेयक पारित होना उचित नहीं है। खासकर दण्डिक अपराध के लिए तय होने वाले ऐसे कानूनों पर सदन में बहस अत्यंत आवश्यक है। सदन की बैठकों की संख्या कम होना भी चिंतनीय है। बैठकों की संख्या में इजाफा होना चाहिए।
विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम कहना है कि मौजूदा व्यवस्था के तहत सदन की बैठकें छह माह के अंतराल में होना जरूरी है, यह संवैधानिक व्यवस्था भी है। पीठासीन अधिकारियों का सुझाव था कि सदन की बैठक तीन माह में होना चाहिए। गौतम के मुताबिक बिना बहस के सदन में विधेयक पारित होना उचित नहीं है। खासकर दण्डिक अपराध के लिए तय होने वाले ऐसे कानूनों पर सदन में बहस अत्यंत आवश्यक है। सदन की बैठकों की संख्या कम होना भी चिंतनीय है। बैठकों की संख्या में इजाफा होना चाहिए।
सभी सभाओं की कार्यप्रणाली में एकरूपता
राज्यों की विधानसभाओं की कार्यप्रणाली में एकरूपता की बात भी सामने आई। कुछ विधायकों में शून्यकाल की परम्परा नहीं है। जबकि कुछ राज्य में शोक संवेदनाएं नहीं होतीं। ऐसे अन्य विषय भी हैं। विधानसभा अध्यक्षों का सुझाव था कि प्रयास हो कि सभी विधानसभाओं के काम-काज में एकरूपता हो। सभी विधानसभाओं की कार्यवाही एक ही प्लेटफार्म पर उपलब्ध होने की बात पर भी सभी सहमत रहे।
राज्यों की विधानसभाओं की कार्यप्रणाली में एकरूपता की बात भी सामने आई। कुछ विधायकों में शून्यकाल की परम्परा नहीं है। जबकि कुछ राज्य में शोक संवेदनाएं नहीं होतीं। ऐसे अन्य विषय भी हैं। विधानसभा अध्यक्षों का सुझाव था कि प्रयास हो कि सभी विधानसभाओं के काम-काज में एकरूपता हो। सभी विधानसभाओं की कार्यवाही एक ही प्लेटफार्म पर उपलब्ध होने की बात पर भी सभी सहमत रहे।