सख्ती और अनुशासन प्रेम से भी उन्हें सिखाया जा सकता है। जब हम बच्चों का अपमान कर रहे होते हैं, तब हम खुद का ही तिरस्कार कर रहे होते हंै, क्योकि फसल तब ही खराब निकलती है जब बीज खराब हो या फिर उसे सींचने में कोताही बरती गई हो। जया ने कहा कि आज बच्चों से बात करते करते अपने पालकों के बारे में सोचने लग जाते हैं। बचपन में मां कहती थी कि करो वही जो खुद को पसंद हो, फिर उसे कभी छोड़ो मत।
उसी क्षेत्र में आगे बढ़ते रहो, धन बेशक कम मिलेगा पर सन्तुष्टि पर्याप्त मिलेगी। यही बात मैं अपने बच्चों से भी कहती हूं कि दूसरों की नकल कर अपना नुकसान न करना, करना वही, जिसमें तुम्हे दिलचस्पी हो, उसी में मुकाम हासिल करना।
कोशिश रहती है कि किसी को ठेस न पहुंचे
ह म अपना जीवन मौज मस्ती और अपने लिए जीना चाहते हैं, पर जब बात मां की आती है या हमारे घर की महिलाओं की आती है, तब हम उनके लिए सीमांकन कर देते हैं। जया ने बताया कि हम भूल जाते हैं की जब एक महिला हमें जन्म दे सकती है, हमे सींच सकती है तो फिर खुद भी अपना भला बुरा समझ सकती है। महिलाओं को पहले से ही त्याग व समर्पण की मूर्ति की उपमा दे दी, शायद इसी वजह से महिलाएं अपनी सीमा में रहती हैं। वो हरवक्त कोशिश करती रहती है कि उनसे कभी किसी को कोई ठेस न पहुंचे।
मां बच्चों के जीवन में संतुलन बनाए रखती है
छत्रसाल नगर (भेल). आज मातृ दिवस है, यानी मां का दिन, हम मानते जरूर हैं कि हर दिन मां का है पर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए इस्से अच्छा दिन नहीं हो सकता। यह बात छत्रसाल नगर निवासी सीमा शर्मा ने कही। उनका कहना है कि जब भी मैं अपनी बचपन के स्मृतियों में जाती हूं, उनमें सबसे पहले एक छबि दिखती है, वो है मां।
मां मेरे जीवन के कार्य क्षेत्र मेरा आदर्श रही है, मां
सीमा ने बताया कि भाई बहनों में सबसे छोटी होने के कारण मेरा मां से ज्यादा लगाव रहा। उनके साथ उनके कार्यों को देखना और उन्हें अपने जीवन में उतारने की कोशिश हमेशा रही। मां शुरू से ही समाज सेवा से जुड़ी हुई थीं। महिलाओं को सिलाई, बुनाई सिखाना, उन्हें अचार पापड़, की ट्रेनिंग देने और फिर उनको रोजगार से जोड़ देना, वो भी नि:शुल्क। साथ ही उन महिलाओं के बच्चों को पढऩे की व्यवस्था कनरा मानो उन्हीं की जिम्मेदारी थी। यही वजह और सीख रही कि पिछले 25 वर्षों से मैं भी उनके पद चिन्हों पर चलकर उनके द्वारा शुरू किए गए सामाजिक और सेवा कार्यांे को आगे बढ़ा रही हूं।
सीम ने बताया, बड़े होने के बाद मन मे बस एक ही बात रहती थी कि मां ने जो दिशा दिखाई है, उस मुकाम को हमें हासिल करना है। इसके लिए सरकारी नौकरी से त्याग पत्र दे दिया। आज मैं बहुत खुश हूं कि भगवान ने एक स्वस्थ खुशहाल जीवन दिया है उसमें से कुछ समय समाज सेवा में दे पाती हूं। आज लगता है कि बच्चों में गुण हो या अवगुण मां वो तराजू है, जो अपने बच्चों के जीवन में संतुलन बनाए रखती है।
मां की सीख से पाया मुकाम और शोहरत
संत हिरदाराम नगर. दो वर्ष की उम्र में पिता की मौत के बाद मां ने अंगुली पकड़कर चलना सिखाया। बड़ी हुई तो सामाजिक सरोकर, अच्छे बुरे का ज्ञान मां की ही देन है। यह बात डिम्मपल नावानी ने कही। उन्होंने बताया कि मां की प्रेरणा से 11वीं क्लास से ही अभिनय की शुरुआत की थी। आज जिस मुकाम पर हैं यह सब मां की ही सीख और देन है। डिम्पल सिंधी समाज से जुड़ी कई फिल्मों में काम कर चुकी हैं। सिंधी में उनकी चार डाक्यूमंट्री फिल्म आ चुकी है और दो फीचर फिल्मों में उन्होंने काम किया है।