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पुरखों की खोज में उभर आई विस्थापन की पीड़ा

locationभोपालPublished: Jan 16, 2020 01:27:29 am

कविता केंद्र वागर्थ की शृंखला के तहत कथाकार अखिलेश का कथा पाठ भारत भवन में बुधवार को आयोजित हुआ, जिसमें उन्होंने अपने उपन्यास निर्वासन के अंशों का पाठ किया

पुरखों की खोज में उभर आई विस्थापन की पीड़ा

पुरखों की खोज में उभर आई विस्थापन की पीड़ा

भोपाल. कविता केंद्र वागर्थ की शृंखला के तहत कथाकार अखिलेश का कथा पाठ भारत भवन में बुधवार को आयोजित हुआ, जिसमें उन्होंने अपने उपन्यास निर्वासन के अंशों का पाठ किया। उन्होंने कहा कि मैंने अपने पाठ के लिए पहले एक कहानी का चुनाव किया, लेकिन मेरी कहानियां लंबी होती हैं। इसलिए मैंने कहानी को छोड़कर अपने उपन्यास के एक अंश रोशनी का स्रोत श्मशान या चांद का चयन किया। इसके मुख्य पात्र रामअनुज पांडे सूरीनाम से भारत आए हैं। वे अपने पुरखों की खोज करना चाहते हैं। वे काफी समृद्धशाली हैं, उम्र भी ज्यादा हो चुकी है। वृद्धावस्था में जैसा होता है, उन्हें ऐसा लगा कि उनके खो चुके पुरखों की खोज खबर लेना चाहिए। तो वे इस काम में जुट गए हैं। इस दौरान उन्हें विस्थापन की पीड़ा का सामना करना पड़ा।
कई कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं
उन्होंने बताया कि सवा सौ साल के काल अवधि में उपन्यास की कथा फैली है। इसमें औपनिवेसिक विस्थापन से आज के उपभोक्ता संस्कृति के कारण दूसरी तरह विस्थापन पैदा हो गया है। मनुष्यता के बीच उसे बताने का इसमें प्रयास किया है। इसमें विस्थापन की पीड़ा है। कार्यक्रम की अध्यक्षता राजेंद्र शर्मा ने की। इस मौके पर संस्कृति प्रमुख सचिव पंकज राग और मुख्य प्रशासनिक अधिकारी प्रेमशंकर शुक्ल उपस्थित थे। अखिलेश हिंदी के जाने-माने कथाकार हैं। उनके कई कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं, जिसमें आदमी नहीं टूटता, मुक्ति, शापग्रस्त, अंधेरा आदि शामिल है। साथ ही अन्वेषण और निर्वासन नाम से उपन्यास प्रकाशित है। उन्हें श्रीकांत वर्मा पुरस्कार, वनमाली पुरस्कार, परिमल सम्मान, इंदु शर्मा कथा सम्मानए स्पंदन सम्मान, बालकृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार सहित अन्य पुरस्कार प्राप्त है।
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