भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में अभियोजन की स्वीकृति के लिए तीन महीने की अवधि तय है, लेकिन शासन और विभागों में इसका पालन नहीं हो रहा है। लोकायुक्त संगठन ने पिछले साल के भ्रष्टाचार से जुड़े 309 मामलों में अभियोजन की स्वीकृति के लिए शासन व विभागों को फाइल भेजी, लेकिन जवाब नहीं मिला।
लोकायुक्त ने आशंका जताई है कि सचिवालय के ही अधिकारी अधीनस्थों को बचा रहे हैं। समय पर स्वीकृति न मिलने पर एडीजी विशेष पुलिस स्थापना, लोकायुक्त ने भी सचिवालय को पत्र लिखा। बताया जा रहा है कि राजस्व विभाग के 75, सामान्य प्रशासन विभाग के 47, पंचायत एवं ग्रामीण विकास के 32, नगरीय प्रशासन एवं पर्यावरण विभाग के 20 मामले स्वीकृतियों के लिए सचिवालय में पड़े हैं।
आशा है शासन ध्यान देगा
309 मामलों में अभियोजन की स्वीकृति न मिलने से निराश लोकायुक्त संगठन ने शासन को लिखे पत्र में कहा है कि आशा की जाती है कि राज्य शासन इस तरफ ध्यान देगा और भ्रष्टाचारियां को बचाने के प्रयास बंद किए जाएंगे। ऐसी मंशा लोकायुक्त संगठन ने अपने वार्षिक प्रकरणों की रिपोर्ट में जाहिर की है, जिसके कई मायने निकाले जा रहे हैं।
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रोजाना 15 शिकायतें
लोकायुक्त संगठन को बीते साल भ्रष्टाचार, पद के दुरुपयोग, अनुपातहीन संपत्ति, रिश्वत और ट्रेप से संबंधित 15 शिकायतें हर दिन मिलीं। एक साल में 5330 शिकायतें मिलीं, लेकिन सही 648 निकलीं। शेष 4682 शिकायतें खारिज हुईं।
कई शिकायतें सही नहीं पाई जाती हैं, जिसके कारण निरस्त की जाती है। अभियोजन की स्वीकृति की प्रक्रिया चल रही है।
– अनिल कुमार, डीजी, लोकायुक्त संगठन विशेष स्थापना पुलिस