घाटे के कारण तीनों विद्युत वितरण कंपनियों ने तकनीकी दांव-पेंच अपनाए और अभी तक नुकसान के 2018-19 के अंतिम डाटा पेश नहीं किए। इसका फायदा कंपनियों को यह मिला है कि 2018-19 के नुकसान के पैमाने को ही वित्तीय सत्र 2019-20 के लिए मान्य कर दिया गया है। यानी अब तीनों कंपनियों को पुराने मापदंड के हिसाब से ही घाटे को काबू में करना है, जबकि यदि कंपनियां डाटा पेश करतीं तो औसतन इस बार एक से दो फीसदी पैमाने में और कमी आ सकती थी।
बिजली कंपनियां सब्सिडी के फेर का भी जमकर फायदा उठा रही हैं। इन कंपनियों को कुल कमाई की जरूरत ही 37 हजार करोड़ रुपए सालाना की है, इसमें से 17 हजार करोड़ तो सरकार से सब्सिडी ले लेती हैं। बाकी करीब 21 हजार करोड़ ही जनता से वसूलना होते हैं, लेकिन इसमें वह फेल हो जाती हैं। 17 हजार करोड़ की सब्सिडी में 80 फीसदी राशि खेती के फीडर की है। इस बार एक रुपए में 100 यूनिट तक बिजली की योजना के कारण 770 करोड़ रुपए इस सब्सिडी में शामिल हुए हैं।
10 फीसदी अधिक नुकसान बिजली कंपनियों में दर्ज
17 फीसदी पूर्व क्षेत्र में मापदंड, पर 27.05 फीसदी घाटा
18 फीसदी मध्य क्षेत्र में मापदंड, पर 37.51 फीसदी घाटा
15.50 फीसदी पश्चिम क्षेत्र में मापदंड, पर 16.63 फीसदी घाटा
– प्रियव्रत सिंह, ऊर्जा मंत्री