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भोपाल

देश में मां शारदा का इकलौता मंदिर, यहां आज भी आते हैं आल्हा और उदल

mp.patrika.com एक सीरीज के तहत रोज आपको मध्य प्रदेश के ऐसे ही अनोखे मंदिरों के बारे में बता रहा है… 

भोपालFeb 20, 2016 / 12:40 pm

Nitesh Tripathi


मध्य प्रदेश में कुछ ऐसे मंदिर हैं, जिनकी परंपराएं रोचक तो हैं ही ये श्रद्धालुओं को चौंकाती भी हैं। mp.patrika.com एक सीरीज के तहत रोज आपको मध्य प्रदेश के ऐसे ही अनोखे मंदिरों के बारे में बता रहा है… आज जानिए मैहर में शारदा माता मंदिर से जुड़े रोचक किस्से…)


मध्य प्रदेश के सतना जिले में पर्वत की चोटी के बीच में ही शारदा माता का मंदिर है। भक्त यहां 1063 सीढ़ियां लांघ कर माता के दर्शन करने जाते हैं। पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है। मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित इस मंदिर को मैहर देवी का मंदिर भी कहा जाता है। यहां माता के साथ देवी काली, दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेष नाग, श्री काल भैरवी, भगवान, फूलमति माता, ब्रह्म देव, हनुमान जी और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है।



मां शारदा के भक्त थे आल्हा और उदल
अल्हा और उदल शारदा माता के बड़े भक्त हुआ करते थे। आल्हा और उदल वही हैं जिन्होनें पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था। ऐसा कहा जाता है कि इन दोनों के द्वारा ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के मंदिर की खोज की गई थी। फिर आल्हा ने इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था। आज भी यह मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और उदल ही करते हैं। 

sharada devi temple maihar


यहां कुश्ती लड़ते थे दोनो भाई
मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है। तालाब से 2 किलोमीटर आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता है, जिसके बारे में ये मान्यता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे। मंदिर के पीछे वाले तालाब को आल्हा तालाब कहा जाता है।

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ये है मंदिर से जुडी कहानी
माना जाता है कि राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री सती शिव से विवाह करना चाहती थी। लेकिन राजा दक्ष को ये मंजूर नहीं था। शिव के बारे में उनकी धारणा थी कि वे भूतों और अघोरियों के साथी हैं। लेकिन सती नहीं मानी और उन्होंने अपनी जि़द पर भगवान शिव से विवाह कर लिया। बाद में राजा दक्ष ने एक यज्ञ करवाया। जिसमें शामिल होने के लिए ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को बुलाया गया पर जान-बूझकर भगवान शंकर को इससे दूर रखा गया और वो नहीं आ पाए। दक्ष की पुत्री और शंकर जी की पत्नी सती इससे बहुत आहत हुईं। 


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ऐसे क्रोध में खुला शिव का तीसरा नेत्र
जब दक्ष द्वारा शिव को नहीं बुलाया गया तो यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता से शंकर जी को आमंत्रित नहीं करने का कारण पूछा। इस पर दक्ष द्वारा भगवान शंकर को अपशब्द कहा गया। ये बात सती को अपमानित लगी और उन्होंने दुखी होकर यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी जान दे दी। जब भगवान शंकर को इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका त्रिनेत्र खुल गया।



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गुस्से में तांडव करने लगे शिव
फिर गुस्से में शिव ने यज्ञ कुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कर कंधे पर उठा लिया और तांडव करने लगे। जिसके बाद ब्रह्मांड पर खतरा मंडराने लगा और फिर सृष्टि की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 52 भागों में बांट दिया। जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठों बन गए। 



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सती ने पार्वती बनकर लिया जन्म
अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिवजी को फिर से पति रूप में प्राप्त हो गई। ऐसी मान्यता है कि यहीं माता का हार गिरा था। हालांकि, सतना का ये मैहर मंदिर शक्ति पीठ तो नहीं है। लेकिन लोगों की आस्था इस कदर है कि यहां सालों से माता के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती है।



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फैक्ट्स
त्रिकूट पर्वत पर मैहर देवी का मंदिर भू-तल से छह सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
मंदिर तक जाने वाले मार्ग में तीन सौ फीट तक की यात्रा गाड़ी से भी की जा सकती है। 
माता शारदा की मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी। 
मूर्ति पर देवनागरी लिपि में शिलालेख भी अंकित है।
जहां बताया गया है कि सरस्वती के पुत्र दामोदर ही कलियुग के व्यास मुनि कहे जाएंगे। 
दुनिया के जाने-माने इतिहासकार ए कनिंग्घम ने इस मंदिर पर विस्तार से शोध किया है। 
इस मंदिर में पुराने समय से ही बलि देने की प्रथा है। 
लेकिन 1922 में सतना के राजा ब्रजनाथ जूदेव ने पशु बलि को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया।
मंदिर के पास से ही येलजी नदी बहती है। 
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