हालांकि प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस बार युवाओं पर भरोसा करते हुए उन्हें चुनाव में उतारा था, लेकिन मतदाताओं ने इन्हें अपनी पसंद नहीं माना। नए नेताओं को मौका देने के लिए भाजपा ने 52 विधायकों के टिकट काटे थे, जबकि कांग्रेस ने 5 विधायकों के टिकट काटकर अन्य को मौका दिया था।
महिलाओं की संख्या घटी
पिछली बार महिला विधायकों की संख्या 32 थी, इस बार 21 महिलाएं ही चुनाव जीती हैं। भाजपा की 11 और कांग्रेस की 9 हैं, जबकि बसपा की एक महिला विधायक है।
नए विधायकों में कांग्रेस आगे
पहली बार विधानसभा चुनाव जीतने वाले विधायकों की बात करें तो इनमें कांग्रेस के सर्वाधिक 55 हैं, जबकि भाजपा के नए विधायकों की संख्या 29 है। निर्दलीय चार विधायकों में से तीन पहली बार विधायक बने हैं। सदन में इस बार समाजवादी पार्टी का एक विधायक पहुंचा है। ये भी पहली बार के विधायक हैं। बसपा के दोनों विधायक भी पहली बार के हैं।
अनुभवी विधायकों की संख्या ज्यादा
इस बार सदन में अनुभवी विधायकों की संख्या अधिक रहेगी। 89 विधायक ऐसे हैं, जो पिछली विधानसभा में चुनाव जीत थे और इस बार भी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं। इसके पहले के विधायक रहे नेताओं की बात करें तो इनकी संख्या 51 है। यानी कोई दस साल पहले विधायक था तो कोई 15-20 साल पहले। सदन में सर्वाधिक वरिष्ठ विधायकों की बात करें तो गोपाल भार्गव का नाम प्रमुख है। ये 8वीं बार चुनाव जीते हैं।
काम न आया दलबदल
सदन तक पहुंचने नेताओं का दल-बदल भी काम नहीं आया। इनमें पद्मा शुक्ला, रेणु शाह, विद्यावति पटेल शामिल हैं। इन्होंने चुनाव के पहले दल बदला, राजनीतिक दलों ने इन्हें टिकट भी दिए, लेकिन ये जीतने में सफल नहीं हो सकीं।