सबसे अधिक ट्रैप और छापे में पटवारी पकड़े गए हैं। लोकायुक्त पुलिस ने इन 1360 प्रकरणों में तहसीलदार-नायब तहसीलदार जैसे पदों वाले अफसरों पर महज चंद प्रकरणों में ही नकेल कसी है। अन्य जितने भी कर्मचारियों को लोकायुक्त ने आरोपी बनाया हैं, उनमें अधिकांश निचले स्तर का ही अमला है।
लोकायुक्त संगठन, बाबू, एलडीसी, यूडीसी, रीडर, सब इंजीनियर, आरआई, हेल्पर, फॉरेस्ट गार्ड, क्लर्क जैसे कर्मचारियों को सजा दिलवा पाया है। लोकायुक्त पुलिस का तर्क है कि सबसे ज्यादा पब्लिक डीलिंग पटवारी व पुलिस की ही होती हैं, इसलिए ट्रैप और छापे के मामलों में यही आरोपी पकड़ में आते हैं।
खाली पड़े हैं 36 पद, जांच हो रही प्रभावित
मप्र लोकायुक्त संगठन की विशेष स्थापना पुलिस में डीएसपी और निरीक्षकों/ जांच अधिकारियों के 36 पद खाली होने से मौजूदा जांच अधिकारियों पर काम का बोझ बढऩे से कई महत्वपूर्ण जांच समय पर पूरी नहीं हो पा रही है। डीएसपी के 33 में से 16 पद खाली हैं, वहीं इंस्पेक्टरों के 31 में से 20 पद खाली पड़े हुए हैं। पांच पद तो मुख्यालय में ही खाली है। इसके चलते लोकायुक्त पुलिस के अधिकांश मामलों की जांच सालों से रफ्तार नहीं पकड़ पा रही है।
किस कैडर के कितने कर्मचारी हुए ट्रैप
पटवारी- 205
इंस्पेक्टर-157
हेड कांस्टेबल 49
कांस्टेबल- 66
इंजीनियर- 156
एएसआई- 18
एलडीसी- 21
चैयरमेन-7
पंचायत सचिव- 15
सरपंच-18
रेंजर- 18
एसडीओ- 17
तहसीलदार-नायब तहसीलदार-16
प्रिंसिपल- 30
ट्रैप के केस शिकायत आधारित होते हैं। जनता से सीधे जुड़े होते हैं। आम लोग सीधे डिमांड करते हैं। ऐसे केस की शिकायत आने पर हम उसका सत्यापन करते हैं, फिर कार्रवाई की जाती है।
बड़े ओहदे वाले अफसर और ठेकेदारों की मिलीभगत से काम चलता हैं, जहां शिकायतें नगण्य होती है। इसलिए यह मामले सामने नहीं आ पाते हैं। जिन प्रकरणों में क्लास-2 अफसर ने यह कहा कि मेरे रीडर को कुछ दे दो उन मामलों में क्लास-2 अफसर को भी आरोपी बनाया गया है।
– अनिल कुमार, स्पेशल डीजी, लोकायुक्त पुलिस विशेष स्थापना