भोपाल

ओडिशा के बाद मध्यप्रदेश में सबसे कम जीने की उम्र

हेल्थ प्रोफाइल रिपोर्ट में खुलासा

भोपालAug 27, 2018 / 07:37 am

रविकांत दीक्षित

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भोपाल. कुपोषण और शिशुओं की बढ़ती मृत्यु से प्रदेश में जिंदगी अपेक्षाकृत ‘छोटी’ है। ओडिशा के बाद मध्यप्रदेश के लोग सबसे कम जीते हैं। यहां नागरिकों का जीवन राष्ट्रीय औसत से 2.4 साल कम है। यह खुलासा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की हेल्थ प्रोफाइल रिपोर्ट से हुआ है।


रिपोर्ट के मुताबिक, मध्यप्रदेश में लोगों की औसत जिंदगी 66.5 साल है। इस लिहाज से हम देश के औसत 68.9 साल से काफी पीछे हैं, जबकि 74 साल की औसत जिंदगी जीने के साथ केरल अव्वल है। ज्यादा उम्र तक जीने के मामले में उत्तरप्रदेश, बिहार जैसे राज्य भी मध्यप्रदेश से आगे हैं।


महिलाओं की कम उम्र
रिपोर्ट के अनुसार पुरुषों की तुलना में महिलाओं की उम्र ज्यादा होती है। वे औसतन एक साल ज्यादा जीती हैं। प्रदेश में महिलाओं की औसत उम्र 67.3 साल है। पुरुषों के मुकबाले में लंबी उम्र के बावजूद देश के 15 बड़े राज्यों में मध्यप्रदेश की महिलाएं सबसे कम जीती हैं। कम उम्र के औसत में ओडिशा भी महिलाओं की जिंदगी के मामले में हमसे आगे है। सबसे लंबी उम्र की महिलाओं वाले केरल और मध्यप्रदेश के बीच 11 साल का अंतर है। जबकि, राष्ट्रीय औसत से प्रदेश की महिलाएं 4 साल पीछे हैं।

दस साल में दो साल बढ़ेगी जिंदगी
नेशनल हेल्थ प्रोफाइल की रिपोर्ट के आगामी दस साल के अनुमान के मुताबिक प्रदेश की औसत जिंदगी दो साल बढऩे की संभावना है। इसमें प्रदेश के लोगों के जीने की औसत उम्र 68 साल आंकी गई है, तब राष्ट्रीय औसत उम्र 69.8 साल होगी। उड़ीसा का औसत उसी अनुपात में ही रहने से जीने की उम्र में मध्यप्रदेश देश में दूसरे नंबर पर बना रहेगा।

राजस्थान हमसे आगे
राजस्थान में लोग मध्यप्रदेश से दो साल ज्यादा यानी 68.6 वर्ष जीते हैं। महिलाओं की जीने की उम्र में साढ़े तीन साल का अंतर है। अगले एक दशक में राजस्थान में लोगों की औसत उम्र बढ़कर 69.6 साल होने का अनुमान हैं। महिलाएं भी औसतन 73 साल जीवित रहेंगी।

शिशु मृत्यु दर घटाने से ही बदलेंगे हालात
प्रदेश में जीने की उम्र राष्ट्रीय औसत से पीछे होने के कई कारण है। इनमें शिशु मृत्यु दर और कुपोषण प्रमुख है। यह अकेले स्वास्थ्य विभाग का मामला नहीं है, सभी विभागों को मिलकर स्थिति बेहतर करना होगी। उम्मीद है, आयुष्मान भारत योजना लागू होने से स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढऩे पर हालात बदलेंगे।
– डॉ. ललित श्रीवास्तव, प्रदेश उपाध्यक्ष, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन

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