सदन में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस बार सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने की तैयारी कर रही है। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि सरकार पूरी तरह से फेल है। कानून व्यवस्था खराब है, महिला अत्याचार बढ़े हैं, गैंग रेप की घटनाएं ताजा हैं, परेशान किसान आत्महत्या को मजबूर हैं इसके बाद भी सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। सरकार सदन और सदन के बाहर विपक्ष के एक-एक आरोप का जबाव देने को तैयार है। विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव की तैयारी के बीच विश्वास प्रस्ताव की भी तैयारी शुरू हो गई है।
प्रयास है कि विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाए इसके पहले सरकार की ओर से विश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया जाए। सदन में विश्वास प्रस्ताव पारित होने के बाद अविश्वास का महत्व ही समाप्त हो जाएगा।
बिहार के सुझाव पर मंथन –
बिहार विधानसभा सचिवालय ने पिछले दिनों मध्य प्रदेश विधानसभा सचिवालय को पत्र लिखकर पूछा था कि आपके यहां विश्वास प्रस्ताव का प्रावधान है कि नहीं। इस पत्र में यह सुझाव भी दिया गया था कि इसे मध्यप्रदेश में भी लागू किया जा सकता है। बिहार यह पत्र सभी राज्यों को लिखा था। बिहार राज्य के इसी पत्र पर यहां मंथन शुरू हुआ है।
बिहार विधानसभा सचिवालय ने पिछले दिनों मध्य प्रदेश विधानसभा सचिवालय को पत्र लिखकर पूछा था कि आपके यहां विश्वास प्रस्ताव का प्रावधान है कि नहीं। इस पत्र में यह सुझाव भी दिया गया था कि इसे मध्यप्रदेश में भी लागू किया जा सकता है। बिहार यह पत्र सभी राज्यों को लिखा था। बिहार राज्य के इसी पत्र पर यहां मंथन शुरू हुआ है।
नियमों को लेकर विचार-
सदन के कार्यसंचालन के लिए वैसे तो नियम निर्धारित हैं, लेकिन इसमें यदि कोई संशोधन करना है तो सदन की नियम समिति को यह अधिकार है। मंथन हो रहा है कि विश्वास प्रस्ताव के लिए नियमों में संशोधन की जरूरत है या वर्तमान प्रावधानों के तहत ही इसे सदन में पेश किया जा सकता है। जरूरत पड़ी तो समिति के विचार के लिए प्रस्ताव जा सकता है।
सदन के कार्यसंचालन के लिए वैसे तो नियम निर्धारित हैं, लेकिन इसमें यदि कोई संशोधन करना है तो सदन की नियम समिति को यह अधिकार है। मंथन हो रहा है कि विश्वास प्रस्ताव के लिए नियमों में संशोधन की जरूरत है या वर्तमान प्रावधानों के तहत ही इसे सदन में पेश किया जा सकता है। जरूरत पड़ी तो समिति के विचार के लिए प्रस्ताव जा सकता है।
सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने का प्रावधान तो नियमों में है। जहां तक विश्वास प्रस्ताव की बात है तो यह सदन की सहमति हो सकता है। सदन चाहे तो नियमों में भी संशोधन कर सकता है। वैसे विश्वास प्रस्ताव के लिए नियमों में संशोधन की जरूरत नहीं है।
– सुभाष कश्यप, संविधान विशेषज्ञ
– सुभाष कश्यप, संविधान विशेषज्ञ
इधर, सरकार के मंत्री ही नहीं बता रहे उन्होंने कितनी कमाई की :-
सरकार के मंत्री अपनी कमाई बताने से परहेज कर रहे हैं। शुरुआती दौर में लगभग सभी मंत्रियों ने अपनी प्रॉपर्टी की जानकारी सदन में पेश की, लेकिन धीरे-धीरे यह संख्या कम होती गई। इस साल अभी तक मात्र एक मंत्री ने ही अपनी प्रॉपर्टी उजागर की। सरकार का चार साल का कार्यकाल पूरा होने वाला है।
सरकार के मंत्री अपनी कमाई बताने से परहेज कर रहे हैं। शुरुआती दौर में लगभग सभी मंत्रियों ने अपनी प्रॉपर्टी की जानकारी सदन में पेश की, लेकिन धीरे-धीरे यह संख्या कम होती गई। इस साल अभी तक मात्र एक मंत्री ने ही अपनी प्रॉपर्टी उजागर की। सरकार का चार साल का कार्यकाल पूरा होने वाला है।
लेकिन इस दौरान महज दो मंत्रियों ने ही संपत्ति की जानकारी सदन को दी है। 2015 में वित्त मंत्री जयंत मलैया और 2017 में कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने अपने और परिवार से जुड़े विवरण पटल पर रखे। अन्य मंत्रियों ने इस पर दिलचस्पी नहीं दिखाई। अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंत्रियों द्वारा संपत्ति सार्वजनिक किए जाने की पहल की थी।
लिहाजा साल 2011 से 2013 तक नियमित तौर पर मुख्यमंत्री सहित मंत्री विधानसभा सत्र के दौरान पटल पर संपत्ति का खुलासा करते थे। लेकिन दिसंबर 2013 से शुरू हुए तीसरे कार्यकाल से यह परंपरा ही बंद हो गई।
इसलिए बच जाते हैं मंत्री –
सरकारी नियमों में शासकीय सेवकों के लिए हर साल संपत्ति का ब्योरा विभाग को उपलब्ध कराना अनिवार्य है। ऐसा नहीं करने पर वेतन रोकने और अनुशासनात्मक कार्रवाई तक का प्रावधान है। लेकिन मंत्रियों और विधायकों के लिए ऐसा कोई बंधनकारी नियम नहीं है। जिसका वे फायदा उठाते हैं। केवल चुनाव आयोग की अनिवार्यता के चलते नामांकन के दौरान ही वे जानकारी सार्वजनिक करते हैं। चुनाव आयोग ने तो इसके लिए फार्मेट भी नियत कर दिया है। तथ्य छिपाए जाने पर सदस्यता समाप्त किए जाने तक की कार्रवाई हो सकती है।
सरकारी नियमों में शासकीय सेवकों के लिए हर साल संपत्ति का ब्योरा विभाग को उपलब्ध कराना अनिवार्य है। ऐसा नहीं करने पर वेतन रोकने और अनुशासनात्मक कार्रवाई तक का प्रावधान है। लेकिन मंत्रियों और विधायकों के लिए ऐसा कोई बंधनकारी नियम नहीं है। जिसका वे फायदा उठाते हैं। केवल चुनाव आयोग की अनिवार्यता के चलते नामांकन के दौरान ही वे जानकारी सार्वजनिक करते हैं। चुनाव आयोग ने तो इसके लिए फार्मेट भी नियत कर दिया है। तथ्य छिपाए जाने पर सदस्यता समाप्त किए जाने तक की कार्रवाई हो सकती है।
विधायकों से पूछ रहे हैं प्रॉपर्टी –
विधायकों को परखने वन-टू-वन बैठक कर रहे सीएम संपत्ति बढऩे के बारे में भी पूछ रहे हैं। एेसे में मंत्रियों द्वारा प्रॉपर्टी उजागर न करने पर सवाल उठ रहे हैं।
विधायकों को परखने वन-टू-वन बैठक कर रहे सीएम संपत्ति बढऩे के बारे में भी पूछ रहे हैं। एेसे में मंत्रियों द्वारा प्रॉपर्टी उजागर न करने पर सवाल उठ रहे हैं।
सदन में जो परम्पराएं शुरू की जाती हैं, उनमें निरंतरता बनाए रखना चाहिए। किस मंशा से जानकारी नहीं दी जा रही है, यह तो वही जानें। गलत संदेश जाता है।
– श्रीनिवास तिवारी, पूर्व विस अध्यक्ष
– श्रीनिवास तिवारी, पूर्व विस अध्यक्ष