2011 के बाद बढ़ी औसत आयु
राहत की बात यह है कि राज्य में औसत आयु बढ़ी है। मध्यप्रदेश में वर्ष 2011 से पहले औसत आयु 55.6 वर्ष (देश में सबसे कम) थी। 2011 के बाद यह औसत 63.7 साल हो गई है। यह बेहतर खान-पान और स्वास्थ्य के प्रति लोगों की जागरुकता के कारण संभव हुआ है। दूसरी ओर मध्यप्रदेश गठन के समय 1956 में जिले 43 थे। 1998 में बड़े जिलों से 16 नए जिले बनाए गए ,जिनसे मध्यप्रदेश में कुल जिलों की संख्या 61 हो गई। इसके बाद मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ अलग हुआ। अभी मध्यप्रदेश में 52 जिले हैं।
गरीबी का अनुपात 21.65 फीसदी
देश में गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले व्यक्तियों का अनुपात 21.92 प्रतिशत, जबकि मध्यप्रदेश में 31.65 प्रतिशत है। देश में उत्तरप्रदेश और बिहार को छोड़कर मध्यप्रदेश में सर्वाधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं, जिनकी संख्या 2 करोड़ 34 लाख है। वहीं सरकारी योजनाओं के हिसाब से देखें तो मध्यप्रदेश में सस्ता अनाज पाने वाले गरीब 5.55 करोड़ है।
गरीबी की परिभाषा पर पेंच
गरीबी को लेकर एक बड़ा सवाल ये भी रहा कि गरीबी की परिभाषा कितनी सटीक है। किसे गरीब माना जाए और किसे नहीं, इसे लेकर भी विवाद की स्थिति रही। मध्यप्रदेश में भी इस पर सवाल उठते रहे हैं। प्रदेश में वर्ष 2004-05 में 48.6 फीसदी आबादी गरीब थी, जबकि वर्ष 2009-10 में गरीबी का प्रतिशत घटकर 36.7 हो गया। योजना आयोग के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 1993-94 से वर्ष 2004-05 के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर गरीबी में सात प्रतिशत की कमी आई, जबकि इस दौरान मध्य प्रदेश में गरीबी वार्षिक 0.36 प्रतिशत बढ़ी। इसके उलट वर्ष 2004 से 2009 तक राष्ट्रीय स्तर पर गरीबी में वार्षिक 0.15 प्रतिशत की कमी आई, जबकि इस अवधि में मध्य प्रदेश में गरीबी 24 प्रतिशत की दर से कम हुई।
एकदम संभव नहीं है जनसंख्या नियंत्रण
सेवानिवृत्त मुख्य सचिव निर्मला बुच का कहना है कि जनसंख्या नियंत्रण एकदम संभव नहीं है। परिवार नियोजन कार्यक्रम के परिणाम दिखे हैं। सरकार ने कानून बनाया था कि दो से अधिक बच्चे नहीं होना चाहिए। उस दौरान अध्ययन किया है। इसमें मप्र सहित अन्य राज्य भी शामिल थे। लोगों ने परिवार घटाया है, लेकिन अभी भी शिक्षा, जागरुकता की जरूरत है।
तेजी से काम करने की जरूरत
वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. एसके सक्सेना का कहना है कि जिस तरह से आबादी बढ़ रही है, उस लिहाज से तेजी से काम करने की जरूरत है। कोरोना काल में जो काम डेढ़ वर्षों में हुए, उसे करने में करीब 10 साल लग जाते। अब जरूरत है कि इस गति को बनाए रखने की। एम्स जैसे संस्थानों की संख्या बढऩी चाहिए। खासतौर पर बड़े अस्पतालों पर बोझ कम करने के लिए प्राइमरी हेल्थ सेक्टर को मजबूत बनाना बहुत जरूरी है।