आधा हो गया, लेकिन फिर काम बंद कर दिया गया। यह काम क्यों बंद हुआ, किसी को नहीं मालूम। गड्ढों पर बात ही करना बेमानी है। यहां तो क्या छतरपुर से सागर रोड पर चले जाइए, हर 10 किलोमीटर के बाद ऐसी अधूरी बनी पुलिया नजर आ जाएंगी।
सड़क पर अनगिनत गड्ढे आए दिन हादसों का कारण बन रहे हैं। सुनने और देखने की फुर्सत किसी को नहीं है। बुंदेलखंड में सफर के हिचकौलों ने साफ कर दिया कि तस्वीर वैसी नहीं है, जैसी भोपाल में बैठकर नजर आती है। सड़कों पर गड्ढे यहां भी हैं और वहां भी।
कई पुलियों का काम अधूरा है। इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि सड़कें गांव-गांव तक नजर आने लगी हैं, लेकिन इसे भी झुठलाया नहीं जा सकता है कि बनने के बाद इन सड़कों की सुध लेने की फुर्सत भी किसी को नहीं है।
भोपाल से शुरू हुआ सफर सागर होते हुए टीकमगढ़, छतरपुर जिलों में घूमते हुए सागर आकर पूरा हुआ। यहां के गड्ढों को देखने के बाद मन में अमरीका की सड़कों की कल्पना जरूर होने लगती है।
खैर बुंदेलखंड की सड़कों पर सवाल उठाने से पहले मोदी सरकार के परिवहन मंत्रालय की 2017 की एक रिपोर्ट पर गौर फरमा लेते हैं, जिसमें कहा गया था कि देशभर में होने वाले सड़क हादसों में मध्यप्रदेश दूसरे नंबर पर है।
देशभर में हुई दुर्घटनाओं में से 11.2 प्रतिशत घटनाएं केवल मध्यप्रदेश में हुई हैं। रिपोर्ट में साफ कहा गया कि साल 2016 के भीतर देशभर में 4.80 लाख सड़क हादसों में से 53707 दुर्घटनाएं मध्यप्रदेश में हुई हैं। देश में होने वाला हर नौवां एक्सीडेंट मध्यप्रदेश में हुआ है।
हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अब मध्यप्रदेश में सड़कें नजर आने लगी हैं, जो दिग्विजय सिंह की सरकार के समय नजर भी नहीं आती थीं। छतरपुर के शंकर पटेरिया कहते हैं कि जे सरकार से उम्मीद बहुत हतीं, लेकिन सरकार ने हमाए लाने कछु नहीं करो। बातें भौत हो रई हैं, लेकिन जमीन पे हमें कछु नहीं मिल रओ है।
अब हम और कऊं जाकें नौकरी-मजदूरी न करहें तो पेट कैसे पालहें। पलायन से जूझ रहे बुंदेलखंड को करीब से समझने की कोशिश की तो सवाल खुद ब खुद खड़े हो गए। मोदी सरकार के ही श्रम और रोजगार मंत्रालय की हालिया रिपोर्ट पूरे मध्यप्रदेश की तस्वीर बयां करती है। इस रिपोर्ट के अनुसार बीते चार सालों में बेरोजगारी का प्रतिशत मध्यप्रदेश में तेजी से बढ़ा है।
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत तीन सालों में मप्र को दो अरब दो करोड़ 93 लाख रुपए की फंडिंग के बाद भी रोजगार 43713 लोगों को ही मिला। 2015-16 में हुए वार्षिक सर्वेक्षण में मध्यप्रदेश में बेरोजगारी का प्रतिशत तीन रहा, जबकि वर्ष 2014-15 में 2.3 था। यानी एक साल में बेरोजगारी कम करने में सरकार विफल रही। वैसे बता दें कि मध्यप्रदेश सरकार के आंकड़े साफ कहते हैं कि यहां पर पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या 40 लाख से ज्यादा है।