समीकरण बिगाडऩे के लिए खडे़ किए जाते उम्मीदवार…
इस वर्ष नरेला से 31 प्रत्याशी मैदान में हैं, जिसमें 20 निर्दलीय हैं, बाकी अन्य दलों से। नरेला और गोविंदपुरा एेसी सीटें है जिन पर हर पार्टी का एक-एक उम्मीदवार मैदान में है।
जानकार बताते हैं कि ऐसे प्रत्याशी समीकरण बिगाडऩे के लिए खडे़ किए जाते हैं। कई बार प्रमुख पार्टियां जिनमें सीधा मुकाबला होता है, वे भी एक-दूसरे की काट के लिए एक नाम के कई डमी प्रत्याशी मैदान में उतारती हैं।
नरेला सीट पर इसका उदाहरण देखने को मिला। यहां से राष्ट्रीय पार्टी के प्रत्याशी को पटखनी देने के लिए उनके ही हमनाम दो निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में हैं। कई बार इसका नुकसान भी उठाना पड़ता है।
चुनावी वादे पूरे नहीं होने की नाराजगी भी…
राजनीति के जानकार केसी मल्ल बताते हैं पिछले चुनावों में वादे कर वोट लेने के बाद जब प्रत्याशी खरे नहीं उतरते तब ये स्थिति बनती है। कुछ डमी प्रत्याशी दूसरी पार्टी के प्रत्याशी के हमनाम भी होते हैं। ये किसी के इशारे पर वोट काटने के लिए आते हैं।
नरेला में 20 निर्दलीय हैं तो निश्चित ही इनमें से 12 तो एेसे होंगे जो पिछले चुनाव में किए गए वादों से खफा हैं। एेसे प्रत्याशी पक्ष और विपक्ष दोनों की रणनीति पर पानी फेरने का काम करते हैं।
क्षेत्र के छोटे मुद्दे बन रहे बड़ी परेशानी…
जिले में परिसीमन के बाद सातों विधानसभा सीटों पर खड़े होने वाले प्रत्याशियों का गणित भी बदलता रहा है। लोगों के छोटे-छोटे मुद्दे बड़ा रूप ले लेते हैं। हुजूर में श्याम मीणा और रामेश्वर शर्मा के बीच झगड़ा। ऐसे में श्याम ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है।
उधर, बैरसिया में भाजपा से टिकट न मिलने पर खफा ब्रह्मानंद रत्नाकर अब बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। इससे भाजपा के प्रत्याशियों का गणित गड़बड़ा रहा है।