दुनियाभर में अनेक शिवलिंग हैं, लेकिन यह शिवलिंग बहुत प्राचीन है और इस पर जल,दूध, बिलपत्र आदि तो चढ़ता ही है, साथ ही शिवलिंग पर सिंदूर भी चढ़ाया जाता है। इसी लिए इस शिवालयर को तिलक सिंदूर के नाम से जाना जाता है।
भस्मासुर से बचने यहीं छिपे थे शिवजी
किंवदंती है कि जब भोलेनाथ के पीछे भस्मासुर पड़ गए थे, तो उससे पीछा छुड़वाने के लिए उन्होंने सतपुड़ा की अनेक पहाड़ियों में शरण ली थी। तिलक सिंदूर भी उन्हीं में से एक है। इसके अलावा जटाशंकर भी ऐसा ही स्थान है जहां भगवान को भस्मासुर से बचने के लिए छुपना पड़ा था। यह भी माना जाता है कि तिलक सिंदूर से पचमढ़ी तक सुरंग भी बनाई गई थी।
-यह भी मान्यता है कि यह सुरंग आज भी यहां मौजूद है, जो पचमढ़ी में निकलती है। शिवजी इसी रास्ते से पचमढ़ी गए थे। जहां वे जटाशंकर में भी छुपकर रहे थे।
यह है पौराणिक महत्व
सतपुड़ा के पहाड़ों में स्थित तिलक सिंदूर का पौराणिक महत्व है। इसके पुख्ता प्रणाण तो नहीं मिलते हैं, लेकिन तपस्वी ब्रह्मलीन कलिकानंद के मुताबिक यह ओंकारेश्वर स्थित महादेव मंदिर के समकालीन शिवलिंग है। यहां शिवलिंग पर स्थित जलहरी का आकार चतुष्कोणीय है, जबकि सामान्य तौर पर जलहरी त्रिकोणात्मक होती है। ओंकारेश्वर के महादेव के समान ही यहां का जल पश्चिम दिशा की ओर जाता है, जबकि अन्य सभी शिवालयों में जल उत्तर की ओर प्रवाहित होता है। ग्रंथों में भी भारतीय उपमहाद्वीप में इस स्थान अनूठा माना गया है।
सतपुड़ा के पहाड़ों में है यह मंदिर
खटामा के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। तिलक सिंदूर ग्राम जमानी में है जो इटारसी से किलोमीटर दूर है। यह मंदिर ढाई सौ मीटर ऊंची पहाड़ी पर मौजूद है। उत्तरमुखी शिवालय सतपुड़ा के पहाड़ों में है। इस क्षेत्र में सागौन, साल, महुआ, खैर आदि के पेड़ अधिक हैं। यहां छोटी धार वाली नदीं हंसगंगा नदी बहती है।
हर साल लगता है मेला
हर साल महाशिवरात्रि के मौके पर हजारों श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने और उन्हें सिंदूर चढ़ाने आते हैं। मान्यता है कि यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां भगवान शंकर को सिंदूर चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं। प्राचीनकाल से ही आदिवासियों के राजा-महाराजा इस स्थान परपूजन करते आए हैं।