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कैरेक्टर को सूट करता है लुक, जानिए क्यों नहीं बदलना चाहते मकरंद

locationभोपालPublished: Sep 24, 2016 02:07:00 pm

Submitted by:

Anwar Khan

घने काले बाल… कैरेक्टर में जान डाल देते हैं। यहां बात किसी खूबसूरत अदाकारा की नहीं बल्कि एक्टिंग की दुनिया में अपना लोहा मनवा चुके मकरंद देशपांडे की हो रही है।

Makarand Deshpande

Makarand Deshpande

भोपाल। घने काले बाल… कैरेक्टर में जान डाल देते हैं। यहां बात किसी खूबसूरत अदाकारा की नहीं बल्कि एक्टिंग की दुनिया में अपना लोहा मनवा चुके मकरंद देशपांडे की हो रही है। लोग उन्हें लुक बदलने की सलाह देते हैं लेकिन मकरंद खुद को कभी बदलना नहीं चाहते।

वे कहते हैं कि मैं अपना लुक कभी नहीं बदलूंगा। मेरे बाल ही मेरी खूबसूरती हैं और ये मेरे कैरेक्टर में जान डाल देते हैं। मकरंद भोपाल के भारत भवन में दिनेश ठाकुर मेमोरियल थियेटर फेस्टिवल में शामिल होने आए हुए हैं। 

शाहरूख मेहनती एक्टर
फिल्म स्वदेश में शाहरूख के साथ एक गाना शूट करने के बाद ही मैं समझ गया कि वे मेहनती एक्टर हैं। मकरंद बताते हैं कि फिल्म सेट पर मैं, शाहरुख खान और आशुतोष गोवारीकर सर्कस के सालों बाद मिले थे। शूटिंग के दौरान मैंने शाहरुख से ही पूरे काम कराए, यहां तक कि मेरी लाइनें भी वही याद करता था।




एक्टिंग मेरा शौक है
मकरंद एक मिडिल क्लास मराठी परिवार से हैं। उनके परिवार में दूर-दूर तक किसी का अभिनय से नाता नहीं था लेकिन मकरंद बचपन से एक्टिंग का शौक रखते थे। यह शौक कब जिंदगी बन गया, पता ही नहीं चला। साल 1987 में आई मेरी पहली फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ ने मुझे हौसला दिया। हालांकि मैं हमेशा से रंगमंच को ज्यादा तव्वजो दी है और चुनिंदा फिल्में ही करता हूं। रंगमंच में मैं खुद को राइटर, एक्टर और डायरेक्टर के रूप में पाता हूं। थियएट में काम करने पर सुकून मिलता है। 

कला खुद राज करती है
राजनैतिक सरहदों में कला को नहीं बांधा जा सकता है। कलाकार की कला खुद ही दुनिया पर राज करती है। चाहे वह हिंदुस्तान से पाकिस्तान हो या पाकिस्तान से हिंदुस्तान। हम सब इसके विक्टिम हैं, यह एक मर्यादा है। कला को कहीं पहुंचने के लिए किसी की परमिशन नहीं लेनी पड़ती। वह वैसे ही पहुंच जाती है। कलाकार को कोई नहीं रोक सकता।

युवाओं को समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें
नाटक ने शुरुआत से ही विभिन्न मुद्दों को मंच से उठाया है। आज जरूरत है कि रंगकर्मी भटकते हुए युवाओं का मुद्दा अलग रूप में मंच से उठाएं। क्योंकि वर्तमान के युवाओं को समझ नहीं आ रहा कि उन्हें क्या करना चाहिए। मैं भी इससे संबंधित एक कहानी लिख रहा हूं, जो कि इंटरवेल तक पूरी हो चुकी है। आगे का काम जारी है।
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