मालवा जून 2017 में हुए किसान आंदोलन के समय से ही उबल रहा है। किसानों का गुस्सा ठंडा भी नहीं हो पाया है कि आदिवासी संगठन ‘जयसÓ और सवर्णों का संगठन सपाक्स समाज दोनों मुख्य राजनीतिक दलों के लिए नए संकट के रूप में खड़े हो गए हैं।
भाजपा ने 2003 से लगातार मालवा में बंपर सीटें बंटोरी हैं। ये रीजन प्रदेश में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की नर्सरी भी कहा जाता है और जनसंघ के जमाने से यहां सुंदरलाल पटवा, वीरेंद्र सखलेचा, कैलाश जोशी, लक्ष्मीनारायण पांडे, जैसे दिग्गज नेता भी यहां पैदा हुए हैं। वहीं, कांग्रेस में भी प्रकाशचंद सेठी और कैलाशनाथ काटजू मालवा के प्रतिनिधित्व से मुख्यमंत्री बने थे।
– एक तिहाई सीटों पर असर
आदिवासी संगठन जयस मालवा-निमाड़ की 66 में से उन 22 सीटों को सीधे-सीधे प्रभावित कर रहा है, जो अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए सुरक्षित हैं। इसमें से 15 सीटें भाजपा के पास हैं तो भाजपा समर्थित निर्दलीय के पास। छह सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है।
जयस संगठन के अगुवा डॉ. हीरा अलावा मालवा के ही हैं, इसलिए उन्होंने यहां की सीटों पर सबसे जदा फोकस किया है। सरदार बांध की ऊंचाई बढ़ाने से निमाड़ के आदिवासी अंचलों में पहले से नाराजगी है। वहीं, अब पांचवीं अनुसूची, पेसा कानून, वनाधिकार जैसे मुद्दों ने मालवा निमाड़ की आदिवासी सीटों का मिजाज गर्मा दिया है।
सपाक्स उज्जैन संभाग में सक्रिय
सपाक्स समाज के संरक्षक रिटायर्ड आइएएस अधिकारी हीरालाल त्रिवेदी उज्जैन जिले के बडनगऱ के मूल निवासी है। उन्होंने उज्जैन, रतलाम, मंदसौर, नीमच, आगर, शाजापुर, धार और देवास जिले को अपनी गतिविधि का केंद्र बनाया है। खुद त्रिवेदी बडनगऱ से चुनाव लड़ सकते हैं। सवर्ण आंदोलन के बंद का असर भी मालवा में व्यापक नजर आया और मालवा के कई कस्बों में सवर्ण समाज के पक्ष में नोटा की अपील करते पोस्टर-बैनर आसानी से देखे जा सकते हैं।
किसका साथ देंगे पाटीदार
मालवा-निमाड़ में पाटीदार नेता हार्दिक पटेल अब तक तीन बड़ी रैलियां कर चुके हैं। किसान आंदोलन के बाद से ही इस इलाके के बड़े वोटर वर्ग पाटीदार के नाराजगी का खतरा बना हुआ है। भाजपा ने पाटीदारों को मनाने बालकृष्ण पाटीदार को मंत्री बनाया। कविता पाटीदार को भी अहम जिम्मेदारी दी, लेकिन पाटीदारों में नाराजगी जस की तस है। पाटीदार समाज के प्रदेशाध्यक्ष और हार्दिक की किसान क्रांति सेना के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र पाटीदार भोपाल का मिसरोद छोड़कर मंदसौर में पिछले छह माह से डेरा डाले हैं। वे अपने परिवार के साथ यहीं रह रहे हैं।
मालवा-निमाड़ के बड़े मुद्दे
किसानों में नाराजगी, सोयाबीन पर संकट, फसल बीमा के सही दाम नहीं मिलना
गिरता भूजल स्तर, नर्मदा-क्षिप्रा लिंक में लेटलतीफी और गड़बड़
सरदार सरोवर बांध से डूब प्रभावितों की नाराजगी
सिंहस्थ में हुए घोटाले
मालवा को मंत्रिमंडल में ज्यादा जगह ना देना
इंदौर, रतलाम, मंदसौर, नीमच जैसे बड़े जिलों से कोई मंत्र नहीं
सोयाबीन फैक्ट्री बंद होने से किसान परेशान, प्याज, लहसुन व अन्य फसलों की लागत नहीं निकल रही
खाद्य प्रसंस्करण, नमकीन, आइटी हब की सिर्फ घोषणाएं हुई
व्यापारी वर्ग में उपजता असंतोष
– मालवा के बड़े चेहर
भाजपा:
सुमित्रा महाजन – लोकसभा स्पीकर। इस बार चुनावी राजनीति से ले सकती हैं रिटायरमेंट।
कैलाश विजयवर्गीय – प्रदेश की राजनीति से हुए दूर। इस बार लड़ सकते हैं लोकसभा चुनाव।
विक्रम वर्मा – पूर्व केंद्रीय मंत्री। इस बार धार से लड़ सकते हैं विधानसभा चुनाव।
नंदकुमार सिंह चौहान – लोकसभा छोड़ विधानसभा चुनाव लडऩे की तैयारी में।
कांग्रेस:
कांतिलाल भूरिया – आदिवासी कार्ड खेलकर बड़ा पद पाने की कवायद में।
जीतू पटवारी – राहुल की गुड बुक में। कार्यकारी अध्यक्ष हैं। जनजागरण यात्रा से सक्रिय।
मीनाक्षी नटराजन – पिछला लोकसभा चुनाव हारीं। राहुल की गुडबुक में।
प्रेमचंद गुड्डू – पिछला लोकसभा चुनाव हारे, फिलहाल बैकफुट पर।
मालवा से खुलता है सत्ता का दरवाजा
विधानसभा में सत्ता किसकी होगी, इसका फैसला मालवा-निमाड़ की 66 सीटों से ही होता है। यहां के वोटर हर चुनाव में किसी एक दल के लिए दिल खोलकर वोट करते हैं। उन्होंने 1993 और 1998 में कांग्रेस के लिए राह आसान की थी तो पिछले तीन चुनावों भाजपा को बंपर वोटों से जिताया। 1998 में कांग्रेस को 48, भाजपा को 16 और अन्य दो सीटें मिली थीं। 2003 में भाजपा को 51, कांग्रेस को 14 और अन्य को एक सीट मिली। 2008 में भाजपा को 41, कांग्रेस को 24 और अन्य को एक सीट मिली थी। 2013 में भाजपा को 56, कांग्रेस को नौ और अन्य को एक सीट मिली थी।
मालवा-निमाड़ जनसंघ का गढ़ रहा है। यह संघ का भी कार्यक्षेत्र रहा है। पहले हम यहां ग्रामीण सीटों पर थे, लेकिन अब हमारा प्रभाव शहरी सीटों पर है।
– विक्रम वर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा नेता
मालवा में खेती-किसानी रोजगार का बड़ा साधन है। भाजपा सरकार ने किसानों के साथ छल किया है। इसके कारण किसानों के प्रति नाराजगी है।
– बाला बच्चन, कार्यकारी अध्यक्ष, कांग्रेस