माइन रिकवरी पार्टी को खतरे में नहीं डालना चाहते थे इसलिए डिमाईनिंग करते वक्त शहीद हो गए कैप्टन श्रेयांश
शहीद कैप्टन श्रेयांश गांधी की शहादत को किया याद

भोपाल। भोपाल पूर्व सैनिक संगठन की ओर से शौर्य स्मारक परिसर में शहीद कैप्टन श्रेयांश कुमार गांधी, सेना मेडल (मरणोपरांत) को श्रृद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता थल सेना के पूर्व उप सेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल मिलन नायडू ने की। मेजर जनरल कंडल ने भारतीय सेना के इंजीनियर कोर के युद्ध में भूमिका और खतरों के बारे में जानकारी दी। इस मौके पर 68 इंजीनियर रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल संदीप तोमर ने भी शहीद कैप्टन श्रेयांश गांधी को पुष्पांजलि अर्पित की।
इस के बाद डॉ. जयलक्ष्मी विनायक व हर्ष बेहरे द्वारा बनाई गई 'श्रेयांश की शहादत' फिल्म का भी प्रदर्शन किया गया। कैप्टन श्रेयांश गांधी ने 7 जनवरी 200& को बारूदी सुरंग में घुसकर बहादुरी का परिचय दिया वे अपनी माइन रिकवरी पार्टी को खतरे में नहीं डालना चाहते थे लेकिन डिमाईनिंग करते वक्त श्रेयांश शहीद हो गए। 53 इंजीनियर रेजिमेंट के 26 वर्षीय श्रेयांश की निडरता और चुनौतीपूर्ण कार्यों को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत सेना मेडल से नवाजा गया।

दिमाग में एक ही बात थी कि अफसर की अपनी सुरक्षा अंत में आती है
राजस्थान के बीकानेर जिले में मौजूद रणजीतपुरा गांव में 7 जनवरी 200& को कैप्टन श्रेयांश गांधी को डीमाईनिंग ऑपरेशन के दौरान ऐसी माइन डिमाइन करने को कहा गया जो बहुत खतरनाक थी। रेतीले इलाको में शिफ्टिंग सैंड ड्यून्स की वजह से माइन्स गहरी दब जाती है और फिर जानवरों की हरकतें या, माईन फील्ड के ऊपर ज़्यादा आवाजाही या पास वाली माईन के ट्रिगर ब्लास्ट की वजह से बहुत सेंसिटिव भी हो जाती है। कैप्टन गांधी को जब ऐसी माईन मिली तो उन्होंने ऐसी माईन को हटाने से होने वाला खतरा भांप लिया।
वे अपनी माइन रिकवरी पार्टी को खतरे में नहीं डालना चाहते थे। उनके दिमाग में एक ही बात थी कि अफसर की अपनी सुरक्षा अंत में आती है और यह सोचते हुए उन्होंने खुद ही माइन हटाने की ठान ली। माइन के ऊपर से मिट्टी हटाते हुए पहले से ही सेंसिटिव हो चुकी माइन में ब्लास्ट हो गया और कैप्टन गांधी शहीद हो गए हालांकि इस ब्लास्ट के चलते उनकी पार्टी के किसी भी जवान को खरोंच नहीं आई। इसके बाद 15 अगस्त 200& को उन्हें मरणोपरांत सेना मेडल से अलंकृत किया गया।

दूसरे अटेम्प्ट में क्लीयर किया था एसएसबी
रायपुर में जन्मे श्रेयांश के पिता वाटर रिसोर्स डिपार्टमेंट में सुपरिटेंडेंट इंजीनियर थे और मां प्रेमलता गांधी हाउसवाइफ थी। रीवा, सतना और ग्वालियर के सरस्वती शिशु मंदिर से स्कूलिंग के बाद बीएससी व एमएससी की पढ़ाई भोपाल के एमवीएम कॉलेज से की। श्रेयांश जब पहली बार इलाहबाद से एसएसबी में बैठे तो असफल रहे लेकिन दूसरी बार में यह परीक्षा पास कर ली।
सेना में दाखिल होने के बाद उनका सैन्य प्रशिक्षण आईएमए देहरादून में हुआ। कमीशन लेने के बाद 53 इंजीनियर में वे अधिकारी बने और भटिंडा पंजाब में लेफ्टिनेंट के पद से उनकी पोस्टिंग हुई। 13 दिसम्बर 2001 में जब संसद भवन दिल्ली में आतंकी हमला हुआ तो देश की सुरक्षा के निए पश्चिमी सीमा पर सेना की तैनाती हुई, इस दौरान श्रेयांश की भी तैनाती राजस्थान में हुई।
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