बैंक का सरकार ने परिसमापन कर दिया। अंशपूजी को कब्जे में ले लिया। कार्य सहकारी बैंकों को दे दिया। सरकार ने जिला सहकारी बैंकों को भूमि विकास बैंक का कर्ज इसलिए दिया था, क्योंकि ये दोनों बैंक एक ही तरह से काम करते हैं। सहकारी बैंक अपने कर्ज के साथ भूमि विकास बैंकों की भी कर्ज वसूली करते रहेंगे। हालत यह रही कि जिला सहकारी बैंकों ने न तो किसानों को बताया कि वे भूमि विकास बैंक का कर्ज हमारे यहां पटा सकते हैं और न ही एक पैसे की वसूली की।
सरकार ने वन टाइम सेटलमेंट स्कीम लागू की थी। इस दौरान भूमि विकास बैंक को किसानों से 582.5 करोड़ रुपए मूलधन वसूलने के लिए कहा था। चंूकि भूमि विकास बैंक बंद होने की कगार पर खड़ा था, इसके चलते कर्मचारियों ने वसूली नहीं की। इसमें से सिर्फ 94.62 करोड़ रुपए किसानों ने जमा कर अपनी करीब 50 हजार हेक्टेयर जमीन मुक्त कराई थी।
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किसानों ने वन टाइम सेंटलमेंट ऑफर का नहीं लिया लाभ
विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा सरकार ने किसानों को वन टाइम सेंटलमेंट का आफर दिया था। यानी किसान मूलधन चुकाकर जमीन मुक्त करा सकते थे, लेकिन इसी दौरान कांग्रेस सरकार ने कर्जमाफी की घोषणा कर दी। किसानों को लगने लगा था कि उनकी जमीन राजनीतिक वादों के बीच मुक्त हो जाएगी, लेकिन ये उम्मीदें भी वादे-इरादों के दांव-पेंच में ही उलझकर रह गई। ऐसा किसानों को इसलिए लग रहा था, क्योंकि एक बार पहले भी सरकार ने किसानों का पूरा कर्ज माफ किया था।