गायब बच्चों के मामले में पुलिस संवेदनशील नहीं है। इसका अंदाजा एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट, महिला प्रकोष्ठ में पिछले डेढ़ साल से खाली पड़े पदों से लगाया जा सकता है। जिनके कंधे पर लापता बच्चों की तलाश समेत मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी होती है।
हर साल बढ़ते बच्चों के अपहरण के आंकड़े
वर्ष 2017
अपह्त बालक 195
अपह्त बालिका 323
कुल अपह्त 518
सुराग नहीं लगा 28
वर्ष 2018
अपह्त बालक 237
अपह्त बालिका 386
कुल अपह्त 623
सुराग नहीं लगा 35
वर्ष 2019
अपह्त बालक 116
अपह्त बालिका 256
कुल अपह्त 372
सुराग नहीं लगा 55
(नोट: आंकड़े एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट के हैं, वर्ष 2019 के आंकड़े जनवरी से जून तक के हैं।)
लापरवाही नहीं बरती जाएगी
लापता बच्चों की तलाश में किसी तरह की लापरवाही नहीं बरती जा रही। एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट की जो भी वर्तमान स्थिति है, जल्द ही इसकी समीक्षा कर पदस्थापना कराई जाएगी।
– योगेश देशमुख, आईजी
ट्रैक चाइल्ड पोर्टल, पर पुलिस अपडेट नहीं
मप्र पुलिस ने लापता लोगों के लिए एमपी पुलिस नागरिक पोर्टल में ट्रैक चाइल्ड पोर्टल बनाया है। इसमें लापता लोगों की फोटो, जानकारी अपलोड की जाती है। पुलिस इस पोर्टल को ओपन ही नहीं करती। बच्चा पुलिस के इर्द-गिर्द ही घूमता रहता है। पुलिस पहचान नहीं पाती।
तलाशी में टालमटोल
लापता बच्चों की तलाश में पुलिस टालमटोल करती है। परिजनों से तलाश के लिए खर्च मांगने जैसे आरोप तक सामने आते हैं। पुलिस बच्चों को तलाशने में एक-दो दिन दिलचस्पी दिखाती है, इसके बाद सुस्त पड़ जाती है।