आत्मनिर्भर बनने के लिए जरूरी है कि पूरी क्षमता के साथ हर व्यक्ति काम कर सके। विकलांगता इसके बीच में रूकावट है। इस रूकावट को हटाकर परेशानियां दूर करने के लिए चिकित्सकों की टीम काम कर रही है। इन्होंने बताया कि मामले में शोध चल रहा है। ये बताते हैं इस समय ऑटिज्म से पीडि़तों की संख्या सबसे ज्यादा है। इसे सामान्य समझ लोग अनदेखा कर देते हैं जो बाद में जाकर घातक साबित होती है।
इनके मुताबिक शोध के दौरान पता लगा कि दो साल तक बच्चों को स्क्रीन यानि मोबाइल या इस तरह की चीजें न दी जाए। ऐसा करने पर बच्चे स्क्रीन पर केन्द्रित होकर कोई भी एक काम करते जाते हैं। जैसा खाना खाना। अभिभावक इस पर ध्यान नहीं देते जबकि ये घातक है। विकलांगता के निदान के लिए प्रदेश के छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में भी ये अभियान चल रहा है।
आदिवासी इलाकों में सबसे ज्यादा काम इन्होंने बताया विकलांगता का सबसे बड़़ा कारण सही समय पर उसकी पहचान न होना है। मामले में अनदेखी से परेशानियां बढ़ती हैं। शासन के साथ मिलकर उम्मीद प्रोजेक्ट के तहत बैतूल के आदिवासी क्षेत्र में काफी काम किया गया। काम करने वालों में पूरी टीम रहती है। इसमें हर विधा के चिकित्सक शामिल हैं।
अंतरराष्ट्रीय समिति में एडवाइजर
विकलांगता निवारण के काम कर रही अंतरराष्ट्रीय समिति अमेरिकन एकेडमी ऑफ सेरेवल डिस्टऐबिलिटी में देश से ये एकमात्र सदस्य हैं। समिति में दुनियाभर से कई चिकित्सक शामिल हैं। ये समिति गाइड लाइन तैयार करती है जिसके आधार पर इलाज के लिए तैयारी होती है। डॉ मिनाई इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक न्यूरो डेवलपमेंट चैप्टर में भी सदस्य हैं।
कोविड के दौर में इलाज पर जोर पूरी दुनिया में कोविड-19 के इलाज पर ही जोर दिया जा रहा है। ऐसे में कई विकलांग बच्चे ऐसे हैं जिनका इलाज चल रहा था वे इससे महरूम हो गए। दुनिया के कई देशों में ये स्थिति हैं। मामले में अमेरिकन समिति के साथ मिलकर इन बच्चों के अधिकार, इलाज और सुरक्षा को लेकर गाइड लाइन बनाने की तैयारी है।